Tags:
Replies are closed for this discussion.
मेरे कहे का अनुमोदन कर मेरा मान बढ़ा दिया सर. हार्दिक आभार
आ योगराज जी , आप ने धाराप्रवाह रूप से वर्ण व्यवस्था की पोल खोल दी . इस बेहतर रचना के लिए आप को बधाई .
हार्दिक आभार आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय जी
बिलकुल सही चोट हुई है वर्ण व्यवस्था के ऊपर .....लडाई दंगे नही होंगे तो क्या ये व्यवस्था चूर चूर ना हो जायेगी ! धर्म निरपेक्ष देश मे् ऐसी विडंबनायें शर्मनाक है । हमेशा की तरह लाजवाब रचना सर जी । बारम्बार नमन आपको ।
रचना पसंद करने के लिए दिल से आभार आ० कांता रॉय जी I
वाह सर गज़ब.. किसी की भलमनसाहत को इस रूप में भी देखा जा सकता है...उच्च वर्ग की आत्म मुग्धता पर कुठाराघात करती कथा के लिए ह्रदय से नमन .
//उच्च वर्ग की आत्म मुग्धता //
बस यही इस लघुकथा का केन्द्रीय भाव था आ० सीमा सिंह जी, रचना को इतनी गहराई से समझकर सराहने हेतु दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ .
सच है नेकी कर और दरिया में डाल - काका ने एक तो पण्डित के बेटे की जान बचाई उसके प्रति अकर्तार्थ होना वाह री वर्ण व्यवस्था । वर्ण व्यवस्था पर कुठाराघात करती सुंदर कथा । सर जी
बहुत बहुत शुक्रिया भाई पंकज जोशी जी I
आदरणीय सर, आपकी इस रचना से कई बातें सीखीं, "जग्गू की यह ललकार सुनकर से काई घरों की बुझी हुई बत्तियाँ फिर से जल उठीं।" जैसी पंक्तियाँ कब-कैसे-कहाँ कही जाये, उच्च वर्ण वालों की बिगड़ी मानसिकता का सटीक वर्णन कैसे किया जाये आदि आदि |
नमन आपको सर !
हार्दिक आभार भाई चंद्रेश छ्तलानी जी I
लघुकथा का आकार उसके प्रकार पर कैसे निर्भर करता है उसका सबसे सार्थक व जीवंत उदाहरण पेश करती है आपकी प्रस्तुत लघुकथा । पहली नजर में तो लगा नहीं कि ये आपकी 'लघुकथा' है । जैसे जैसे कथा पढ़ता गया पूरा दृश्य चलचित्र जैसे आंखों के सामने आ गया । एक क्षण की एेसी प्रस्तुति 'सुभान अल्लाह' । मैं तो कथा में खो ही गया लगा कि वाकई एक गांव के बीचो बीच खड़ा हूं जहां अंधेरे में हाथ में मशालें व लाठीयां थामें एक उग्र भीड़ खड़ी है । वाह ! आकार में कुछ विस्तार पाई लघुकथा के बारे में सोचा कि चल भाई रवि आज तो कुछ मौका है कुछ खामियां ताे अवश्य मिल जाएंगी । बाई गॉड ! एक शब्द भी अनावश्यक नहीं ढूंढ पाया तीन चार बार पढ़़ने के बाद भी । ! सरेंण्डर ! /"......................."/ यह डॉटस देखकर कुछ उम्मीद भी जगी थी परन्तु इन डॉटस की 'खामोशी' जैसे मुझे भी खामोश होना पडा। कथा की अंतिम दो पंक्ितयां /
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |