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बिना त्याग व समर्पण की भावना के कैसा दान ? .......बहुत खूब कहा है आपने आदरणीय लक्ष्मण जी ,संदेश बडा ही सार्थक दिया है आपने इस कथा के माध्यमसे । बधाई आपको ।
लेकिन इसी परिदृश्य के संदर्भ मे मै साथ ही ये पक्ष भी रखना चाहूंगी कि "समर्पण की भावना".....आज के दौड मे महज उपहासित होकर ही रह गई है । बिना स्वार्थ के भी कुछ करो तो लोग उसको भी मतलबपरस्ती से जोड लेते है । क्या मालूम "वारेन बफेट "भी इन आलोचकों के हत्थे चढ गये हो ।
लघुकथा पसंद कर सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका आ. कांता रॉय जी | सादर
अच्छा प्रयास है आ० लड़ीवाला जी I
लघुकथा का प्रयास सराह उत्साहवर्धन करने की लिए हार्दिक आभार स्वीकारे आ. श्री योगराज भाई जी | सादर
एक हाथ दान करे तो दुसरे को पता नहीं चलना चहिये, अर्थात दान कर सीधे भूल जाने वाली बात है| पूजा-पाठ का भी अपना महत्व है जो अध्यात्मिक उन्नति करता है| गोष्ठी में अपने सद्विचार इस रचना के माध्यम से रखने हेतु बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी सर|
जी सही कहाँ आपने गुप्त दान तो यही है जो आप कह रहे है | पर गुप्त दान स्वेच्छा से किया जाता है और दधिची द्वारा हड्डियों का या कर्ण द्वारा कुण्डल कवच का दान मांग पर होता है जो जग जाहिर होने पर भी दान ही है यदि दिल से समर्पित भाव से खुश ख़ुशी किया जाए |
रचना सराहने के हार्दिक आभार श्री चंद्रेश कुमार छतलानी जी |
'दान' की सार्थकता को लेकर अच्छा प्रेरक प्रसंग रचा है आदरणीय लडीवाला जी । सादर
लघु कथा की सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका श्री रवि प्रभाकर जी | सादर
सुदर बात कही आपने आ. लडीवाला जी। बधाई आपको बहुत बहुत।
हार्दिक आभार आदरणीया डॉ. नीरज शर्मा जी | सादर
त्याग को परिभाषित करती हुई अच्छी लघु कथा लिखी है आ० लक्ष्मण जी ,हार्दिक बधाई आपको |
लघु कथा पसंद कर सराहने के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी | सादर
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