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नारी हमेशा पीड़ित ही रही ..कभी किसी बात से कभी किसी | और ये बांझपन तो उसके माथे का सबसे बड़ा कलंक बनके उभरता हैं | माँ बन ही नारी सम्पूर्ण मानी जाती हैं | क्यों ? सवाल दिलो दिमाग में फिर से उकेरती हुई इस कथा के लिय बधाई दी ..सादर अभिवादन
पश्चाताप से बड़ा कोई प्रायश्चित नहीं ... जिस इंसान ने अपनी गलती महसूस कर ली ..उसका व्यवहार स्वंय ही प्रतिउत्तर हो गया ... बहुत बढ़िया कथा के लिए बधाई दीदी..
सशक्त लघु कथा बनी है ,आदरणीया नीरज जी , अंतिम पंक्ति काफी सारे प्रश्न छोडती है पाठक के लिए ,बधाई आपको
अच्छी लघुकथा हुई है आ० डॉ नीरज शर्मा जी I नारी ह्रदय की पीड़ा को सुन्दरता से शब्द बख्शे हैं, हार्दिक बधाई स्वीकारें I
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ नीरज शर्मा जी, स्त्री वेदना को विशिष्ट शैली में परिभाषित करती बेहतरीन लघुकथा!
आदरणीया डॉ नीरज शर्मा जी, इस लघुकथा के माध्यम से आपने बड़े सधे ढंग से स्त्री की वेदना को शाब्दिक किया है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
लघुकथा की पृष्ठभूमि, उसका कथ्य तथा उसका विन्यास तीनों तीन विन्दु हुआ करते हैं. आपकी प्रस्तुत लघुकथा की पृष्ठभूमि संभव है आपके लिए उत्तेजना का कारण बन गयी हो. क्यों कि नारी अस्मिता के मानकों का उथलापन जब शाब्दिक हो कर चर्चा का विषय बनता है तो ऐसा अक्सर होता है. नारी और पुरुष के चश्मे से देखता हुआ यह समाज ऐसी चर्चाओं के सापेक्ष कई विन्दुओं पर छिछलेपन का साक्षी हो जाता है. लेकिन यह भी सत्य है कि पुत्र या पुत्री या बांझपन जैसे विषय अक्सर नारीगत चर्चाओं के विन्दु हुआ करते हैं. कम ही पुरुष होते हैं जिन्हें ऐसी बातों में संलग्न देखा जाता हो. तभी तो कहते हैं कि नारी के लिए सबसे बड़ी बाधा कोई नारी ही खडी करती है. ऐसे मानकों की जड़ में जाया जाय तो नारी ही नारीगत मानकों और कसौटियों केलिए तत्पर देखी गयी है.
प्रस्तुति की शैल्पिक दशा से प्रतीत होता है कि एक बार यह कथा लिख कर पोस्ट कर दी गयी हो. अन्यथा कई ऐसे स्थान हैं जहाँ आप स्वयं संशोधन कर सकती हैं. अनेकों जैसे शब्द की आपसे अपेक्षा नहीं थी आदरणीया.
इस वैचारिक और तथ्य से सफल लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ
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