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हार्दिक आभार आदरणीय मीना जी!
हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी!लघुकथा आपको अच्छी लगी, मेरे लिये यह गौरव की बात है!शुक्रिया!
वाह आदरणीय तेज़वीरजी, मज़ा आगया ! आपकी इस प्रस्तुति केलिए हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएँ
रिश्तों की बिसात -(लघु कथा )
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बेटे की शादी अच्छी तरह सम्पन्न हो जाने के कारण देवनारायण आज बहुत खुश था। बाहर से आये मेहमान लगभग विदा हो चुके थे। वो आज हलवाई,टेंट,लाईट आदि सब का हिसाब कर रहा था। इतने में जानकी की आवाज़ आई ''अजी सुनते हों। ''
''हाँ हाँ सुन रहा हूँ। बोलो क्या कहना है ?''देवनारायण पत्नी के पास आकर बोला।
''मेहमान तो सभी चले गए हैं न जी।''
''हाँ ,भैय्या भाभी को तो कल रवाना कर दिया था। बस बाऊ जी और अम्मा हैं। क्या कहती हो ,उनको दो चार दिन और रख लेते हैं। ''
'' देखो जी ! मैं तो अब बहुत थक गयी हूँ। घर को भी सम्भालना है। कुछ बहाना करके उनको घर छोड़ आओ। ''जानकी ने फुसफुसाते हुए कहा।
''ठीक है। कल सुबह देखता हूँ। '' देवनारायण ने कहा।
भोर होते ही देवनारायण जैसे ही आँगन में आया वहां पहले से ही बाऊ जी और अम्मा अपनी अटैची के साथ कुर्सी पर चाय पी रहे थे।
''आओ देव ,तुम भी चाय पी लो। फिर हमें ऑटो मंगा दो। अब हम घर जाएंगे। '' बाबू जी अपनी ऐनक को ठीक करते हुए कांपती सी आवाज़ में कहा।
'' बाऊ जी, कुछ दिन और रुक जाते। ''देवनारायण ने अनमने मन से कहा।
''नहीं रे देव , देख जानकी बहु थक गयी है ,अच्छा होगा अब हम भी बाकी मेहमानों की तरह अपने घर जाएँ। तुम्हारे बुलाने से हम यहां आ गए , तुम्हारी शादी के शोभा बढ़ गयी , शादी संपन्न हो गयी , रिश्तों की बिसात पर मोहरों का काम खत्म हो गया। अब तुम अपनी बिसात सम्भालो , मोहरों को जाने दो। ''
जानकी और देव की कल रात हुई वार्ता को नम आँखों में समेटे बाऊजी अम्मा के साथ अपनी अटैची उठाकर बाहर के दरवाजे के तरफ चल दिये।
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय सुशील सरना सर प्रदत्त विषय के अनुरूप बढ़िया प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार सर
आदरणीय सुशिल शरण जी आप को लघुकथा को धाराप्रवाह पढ़ गया. इस में पाठकों को बंधे रखने की क्षमता है. यह अंत तक बहुत ही शानदार सन्देश दे कर समाप्त होती है. इस सटीक व सार्थक लघुकथा के लिए मेरी बधाई स्वीकार करे. एक सुझाव है . मुझे ///'देवनारायण पत्नी के पास आकर बोला।/// यह वाक्य अनुपयुक्त लग रहा है. इस के बिना भी लघुकथा सार्थक ही रहेगी.
आदरणीय ओम प्रकाश जी प्रस्तुति पर आपकी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का दिल से आभार। आपका सुझाव स्वागतेय है। हार्दिक आभार।
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