For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनचाहा पलायन ( लघुकथा )

' सब तैयारी हो गयी बेटा ? ' पिता ने कमरे में प्रवेश करते हुए पूछा I पीछे पीछे माँ भी थी ,छोटी -छोटी पोटलियों से लदी-फदी I बहू ये सब ठीक से रख लो ! कोने में खड़ी बहू के हाथ में पोटलियों को थमाते हुए बोली I
' जी अम्मा I '
' सब अच्छे से सहेज लेना ,कुछ छूट न जाए I नयी जगह है परेशानी होगी I '
' जी बाबूजी ! ' इतना ही बोल पाया वह I हालाँकि कहना तो ये चाहता था I ' सब कुछ तो छूट ही रहा है ,आप माँ संगी साथी .......I पर आवाज़ जैसे हलक में ही कही गुम होती  लग रही थी I
कुछ पल रुक कर - मैं और आपकी बहू तो चाहते थे की आप सब भी हमारे साथ ही चलते ,यहाँ अकेले ..... ! '
'न बेटा ,अब कहाँ इस उम्र में गाँव-जवार छूट पायेगा !! तुम्हारी तो रोजी रोटी और सुनहरे भविषय की मज़बूरी है ,वरना तो क्या जाने देता ......I बोलते समय जाने क्यों वह सीधे आँखों में न देख इधर उधर देख रहे थे I लगा उनका भी गला भर आया था I
'जी I '
'अच्छा अब तुम लोग आराम करो ! तड़के ही निकलना होगा I अपना और बहू का ख़याल रखना ,और महानगर जाकर वहीँ का न हो जाना ,आते जाते रहना I अबकी माँ बोली थी I
वह माँ के गले लग रुंधे गले से बोला I
' नहीं माँ ,कभी नहीं , रोजी रोटी के लिए मज़बूरी में गाँव से पलायन कर रहा हूँ रिश्तों से नहीं I '

आँखों में संतुष्टि का भाव लिए माँ बाबूजी तो चले गए किन्तु वह कमरे के बाहर शून्य में बहुत देर तक निहारता रहा मानों माँ बाबूजी के संतुष्ट चेहरों के पीछे छिपे उस अनचाहे पलायन के दर्द को अपने ह्रदय में समाहित कर उन्हें उससे मुक्त करना चाहता हो I

 


मीना पाण्डेय
मौलिक व् अप्रकाशित

Views: 557

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by meena pandey on December 20, 2015 at 1:49am

हार्दिक आभार आदरणीय nita  kasar  जी ,Vijay nikore  जी 

Comment by meena pandey on December 20, 2015 at 1:46am

मेरी  कथा  पर इतनी अच्छी विवेचना के लिए  हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,आपकी बात का संज्ञान अवशय लुंगी मैं I 

Comment by meena pandey on December 20, 2015 at 1:43am

हार्दिक आभार आदरणीय डॉ  गोपाल  नारायण श्रीवास्तव जी ,आपकी बात का संज्ञान अवशय लुंगी मैं

Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 2:45pm

अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया मीना जी।

Comment by Nita Kasar on December 13, 2015 at 8:21pm
कामकाज नौकरी के कारण बच्चों को बाहर भेजना पड़ता है तब माता पिता अपने कलेजे पर पत्थर रख कर उन्है जाने देते है वरिष्ठजन कथा पर राय प्रकट कर चुके है संवेदनशील कथा के लिये बधाई आद०मीना जी ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2015 at 1:14am

आदरणीया मीनाजी, आपकी प्रस्तुति का कथ्य बढिया है और इसके लिए हार्दिक बधाई. लेकिन मैं आदरणीय गोपाल नारायणजी के कहे से सहमत हूँ. पलायन वस्तुतः लघुकथा में वर्णित आसन्न विस्थापन से अलग किस्म का स्थान-परिवर्तन है, जिसमें पारिस्थिक दायित्व को जंजाल समझ उससे पीछा छुड़ा लेने का भाव हुआ करता है. ऐसा स्थान-परिवर्तन तो विदाई के समकक्ष होगा.

एक बात :
//पर आवाज़ जैसे हलक में ही कही गुम होती प्रतीत होती लग रही थी //

उपर्युक्त वाक्य ज़बरदस्ती के शब्दों से भरा हुआ है. प्रतीत होने का अर्थ ही लगना या भान करना होता है. फिर ’गुम होती प्रतीत होती लग रही थी’ किस तरह का शब्द समुच्चय है ? यह सार्थक वाक्य की कसौटी पर शुद्ध नहीं है. शुद्ध वाक्य होगा - पर आवाज़ जैसे हलक़ में ही कहीं गुम होती प्रतीत हुई .. या, ’पर आवाज़ जैसे हलक़ में ही कहीं गुम होती लग रही थी ।’

// सुबह तड़के ही निकलना है //

सुबह और तड़का एक साथ यों प्रयुक्त न कर इसे कल तड़के ही निकलना है या कल अलस्सुबह निकलना है, आदि उचित होगा ।

बहरहाल, आपका प्रयास दीर्घकालिक अभ्यास तथा मंच से आपकी संलग्नता का द्योतक है.
सादर

Comment by मोहन बेगोवाल on December 9, 2015 at 8:39pm

 पलायन तो आज के दौर में जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है, जो बहुत सारे परिवारों की हकीकत हो गई , ये लघुकथा भी ऐसी बात पाती है -बधाई हो 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 9, 2015 at 7:33pm

मीना जी  आपकी कथा में पलायन शब्द का सार्थक प्रयोग नहीं हुआ है -- पलायन भगोडेपंन  को कहते हैं   i  सादर .  

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 9, 2015 at 11:33am
अनचाहे पलायन के भाव पूर्ण परिदृश्य को प्रवाहमय शाब्दिक किया है आपने हृदय की पीड़ा अभिव्यक्त करते हुए। सुंदर सफल प्रस्तुति के लिए तहे दिल बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया मीना पाण्डेय जी।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 9, 2015 at 11:21am

जिस आँगन में खेले कूदे उस आँगन से दूर

इक रोटी की खातिर आये होकर हम मजबूर

पलायन के दर्द को उॉगर करती इस लघुकथा के लिए कोटि कोटि बधाई l

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service