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आ० जोशी जी कथ्य तब भी बहुत शानदार था.. अब तो सोने पर सुहागा वाली बात हो गई..
माँ -बाप तभी तक रेलीवेंट हैं जब तक वे उर्वर हैं . उर्वरता खोते ही वे बन जाते हैं बोझ ---लोक लाज न हो तो मुर्दा घाट भी शायद न ले जांए ----------- वृद्धाश्रम उनके साथ रहने से बेहतर है . सादर .
जनाब विजय जोशी जी ,दिल को छू लेने वाली कामयाब लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई
आज की परिस्थियो पर कटाक्ष करती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय विजय जोशी जी ।
व्यवस्थित करने से कहानी में चार चाँद लग गए ...और एक बात और आदरणीय मसूरी कोई ट्रेन नहीं जाती देहरादून का रिजर्वेशन कहते तो बात ठीक थी देहरादून से मसूरी बाई रोड या चोपर द्वारा ही जाया जा सकता है मैं देहरादून में जिस जगह रहती हूँ वहाँ से कुल एक घंटे का समय लगता है मसूरी का |कहानी बहुत अच्छी है आज की युवा सोच को देखकर घ्रणा होती है कहाँ जा रहे हैं संस्कार ...फल अच्छा लगता है जिस पेड़ से मिला उसकी कोई औकात ही नहीं उनकी नजरों में ..हार्दिक बधाई आपको |
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