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परम आदरणीय कबीर साहिब मैंने आपका जन्म वर्ष तथा प्रोफाइल नहीं देखा था , सिर्फ आपकी रचना देखी थी। आपको सिर्फ नाम से बुलाने की धृष्टता की अनजाने में। तो भी भूल तो भूल है। बड़ा बेअदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ ( साभार ) सच्चे मन से क्षमा चाहता हूँ। आशा है आपने अब तक माफ़ भी कर दिया होगा।
परम आदरणीय , आपकी दरियादिली, कि क्षमा तो किया ही , सब कुछ दे भी दिया आपने
थोड़ा लालची हो जाऊं ? लगता है , जो मांगूंगा मिल जाएगा।
मेरी सलामती की दुआ अगर कर पाएं , तो कीजिएगा कभी।
ज्यादा नहीं , दो -चार साल मांग लीजिए उससे , जिससे सब मांग लेते हैं।
जनाब योगराज प्रभाकर जी आदाब,लघुकथा का ये मेरा पहला प्रयास है आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण होगी आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया का में बेचैनी से इन्तिज़ार करूँगा,इस प्रतिक्रिया के आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
मोहतरम समर कबीर साहिब इत्मीनान रखें, बतौर लघुकथा यह प्रस्तुति सिनफ़ के तकरीबन हर तकाज़े को पूरा करती है I क्योंकि लघुकथा विधा में यह आपकी पहली कोशिश है, लिहाज़ा कामयाब है I बहरहाल आकांक्षा और महत्वकांक्षा में एक बारीक सा फर्क होता है जो दोनों के मानी बदल देता है I पहले आपने सार-छ्न्द कहा और अब लघुकथा, इससे ओबीओ परिवार और समृद्ध हुआ है I
मैं ओबीओ से बेपनाह मुहब्बत करता हूँ,मेरी हार्दिक इच्छा तो ये है कि मैं ओबीओ पर जितने भी आयोजन होते हैं उसमें हिस्सेदार बनूँ----------विभोर हो उठी। शत-शत नमन आपको आदरणीय समर कबीर साहब ।
आदरणीय योगराज भाईजी, एक सिद्धहस्त ग़ज़लकार को साहित्य की अन्य विधाओं में प्रयास करते देखना इस् लिए सुखद नहीं है कि रचनाकार लगातार समृद्ध हो रहा है, बल्कि ओबीओ के उद्येश्य को प्रभावी स्वीकृति मिल रही है.
आदरणीय समर कबीर साहब को पिछले छन्दोत्सव में छान्दसिक रचना पर प्रयासरत देखना जितना रोमांचित कर रहा था, वही कुछ भाव मोहतरम की लघुकथा को देख कर उठ रहे हैं.
जहाँ तक शिल्प और विधा के आलोक की बात है तो जितना संवेदनशील आदरणीय समर कबीर साहब हैं, उनके लिए विधासम्मत रचनाएँ प्रस्तुत करना अधिक कठिन नही होगा. आदरणीय समर कबीर को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ
जहाँ तक शिल्प और विधा के आलोक की बात है तो जितना संवेदनशील आदरणीय समर कबीर साहब हैं, उनके लिए विधासम्मत रचनाएँ प्रस्तुत करना अधिक कठिन नही होगा. ------- एकदम सही कह रहे है आप। सादर।
आदरणीया कान्ताजी, आदरणीय समर कबीर साहब के लिए यह वाकई सही है. मुझे पूरी आश्वस्ति है.
पर्वतों से बढ़ चुकी है अब नदी
"आगे आगे देखिये होता है क्या"
:-))
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