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साथी (हमसफ़र )
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रात के ग्यारह बजे जैसे ही अहमद ने साथी मज़्मून पर नज़्म लिखने के लिए क़लम उठाया उसे अपनी तन्हाई का अहसास सताने लगा /इस फ़ानी दुनिया में हमेशा साथ कौन निभा पता है। ....... माँ ,बाप का साथ बरसों पहले छूट गया। .. बेटा बहू को लेकर परदेस चला गया। .. जो ज़िंदगी में हमसफ़र बनकर आयी वह भी पांच साल पहले खुदा को प्यारी हो गयी / अब सिर्फ़ साथ निभाने के लिए बेचारा क़लम ही बचा था जो क़दम ब क़दम साथ चल रहा था / कहते हैं इंसान का साया भी उम्र भर का साथी है जो मरते दम तक साथ रहता है , इस वक़्त कम से कम यह सुकून तो है कि उसके पास उसका साया और क़लम साथ है /...... अहमद यादों की दुनिया में खोये थे कि अचानक बिजली चली जाती है , वह मंज़र बदलते ही घबरा जाते हैं। ... अँधेरे में उन्हें अपना साया भी नज़र आता बल्कि अहसास होने लगता है कि साया भी साथ छोड़ गया। ..... हाथों से एक सहारा जाता हुआ देख कर वह अपने क़लम को मज़बूती से पकड़ लेते हैं। ..........
(मौलिक व अप्रकाशित )
आप ने बहुत ही उम्दा भाव व्यक्त किए है आदरणीय तस्दीक अहमद जी .
जनाब ओमप्रकाश साहिब , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ....
वाह आदरणीय बहुत बहुत बधाइयाँ इस सुंदर कथा हेतु।
जनाब पवन जैन साहिब ,आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
ठीक फरमाया आदरणीय शेख उस्मानी जी .
जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहिब , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। .... आपकी कमेंट पढ़कर मुझे इस बात का एहसास हुआ कि टाइप करते वक़्त गलती हो गयी। ....... क़लम / इस्त्रिलिंग है। ... शुक्रिया
क्या कमल की बात लिख गई, ये हमेशा के लिए साथ निभाती कलम - आदरनीय सुंदर प्रुस्तिति
जनाब मोहन बेगोवाल साहिब ,आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
साथी (हमसफ़र)
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रात के ग्यारह बजे जैसे ही अहमद ने साथी मज़्मून पर नज़्म लिखने के लिए क़लम उठाई ,उसे अपनी तन्हाई का एहसास सताने लगा /इस फ़ानी दुनिया में हमेशा साथ कौन निभा पता है। .... माँ बाप का साथ बरसों पहले छूट गया ,बेटा बहू को लेकर परदेस चला गया। .. जो ज़िंदगी में हमसफ़र बनकर आई वह भी पांच साल पहले खुदा को प्यारी हो गयी/ अब सिर्फ साथ निभाने के लिए बेचारी क़लम ही बची थी जो क़दम ब क़दम साथ चल रही थी /..... कहते हैं इंसान का साया भी उम्र भर का साथी है जो मरते दम तक साथ रहता है /इस वक़्त कम से कम यह सुकून तो है कि उसके पास उसका साया और क़लम साथ है /..... अहमद यादों की दुनिया में खोये थे कि अचानक बिजली चली जाती है , वह मंज़र बदलते ही घबरा जाते हैं। ...... अँधेरे में उन्हें अपना साया भी नज़र नहीं आता है बल्कि एहसास होने लगता है कि साया भी साथ छोड़ गया। ...... हाथों से एक सहारा जाता हुआ देख कर वह अपनी क़लम को मज़बूती से पकड़ लेते हैं। ..........
(मौलिक व अप्रकाशित )
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