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विपरीत परिस्थितियों में स्व -अभिमान की रक्षा हेतु स्वयं का नव -निर्माण हेतु ,चेतनशीलता बखूबी आपने लघुकथा में रोपित किया है जो प्रस्तुति को सार्थक बनाती है। ह्रदय से बधाई आपको आदरणीय ना नयना जी।
यहाँ मैं आदरणीया अर्चना जी से सहमत हूँ कि लघुकथा में " मैं " भाव में कथा लिखने से बचना चाहिए। लघुकथा लेखन एक उद्देश्य के तहत ही लिखा जाता है जिसमें कथ्य सन्देशपरक होता है। " मैं " भाव से लिखी कथा समाज की नहीं बल्कि आपकी संस्मण बन कर रह जाने का डर रहता है। ऐसा कहानी लेखन के लिए उचित है लेकिन लघुकथा के कलेवर के लिए नहीं। सादर।
बहुत मार्मिक लघु कथा हार्दिक बधाई नयना जी
सुन्दर रचना है आदरणीया नयना आरती कानिटकर जी, हार्दिक बधाई !सादर
लघुकथा का अंत हालाकि नाटकीय है, फिर भी लघुकथा अच्छी हुई है आ० नयना जी, लेकिन मुझे यह समझ नहीं आया कि यह साथी विषय को कैसे परिभाषित कर रही हैI आप कुछ रौशनी डाल सकें तो बात समझ आएI
आदरणिय योगराज प्रभाकर भी सादर नमन. जीवन साथी भी तो साथी ही होता है ऐसा मेरा निजी सोच हैI यह रचना सत्य घटना पर आधारित है जो मेरी सहेलि के साथ घटित थीI जो अपने पति को अपनी सेवा और इच्छा के बल पर कोमा से बाहर निकाल लाईI अंत को मैने स्वयं घटित होते देखा हैI जिसे मैने लघुकथा मे ढालने का प्रयत्न किया.किंतु लगता है संप्रेषण सफ़ल नहीं हो पायाI
जैसा अन्य वरिष्ठ जनो ने कहा- रचना मे "मैं" नहीं आना चाहिए.इसके लिये आगे जरुर ध्यान रखूँगीI
उम्दा भावों से युक्त कथा हेतु बधाई स्वीकारें
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