आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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आदरणीय समर कबीर जी साहब, सादर प्रणाम, रचना को पसंद करने और उस पर टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला अफज़ाई करने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया|
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब, रचना को पसंद कर अपनी टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला अफज़ाई करने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया| जी, आपसे सहमत हूँ तर्क शक्ति कुछ तो रही होगी, तभी बुद्धि का विकास हुआ, अन्यथा नहीं हो सकता था| रचना कहते वक्त दिमाग में यह आया था कि उस समय की अच्छाई और बुराई और आज की अच्छाई और बुराई (जो कि समाज पर आधारित है) में बहुत अंतर हो गया है और यह अच्छाई है अथवा बुराई यही इस रचना के माध्यम से कहने का प्रयास किया| आपका पुनः आभार आपने रचना के मर्म तक पहुँच कर इतना बढ़िया विश्लेषण कर दिया, आपके द्वारा बताये गए शीर्षक भी निःसंदेह सार्थक हैं| अनुरोध है कि ऐसे ही मेरी रचनाओ का निष्पक्ष विश्लेषण कर अपने सुझावों से कृतार्थ करते रहें|
रचना को पसंद करने और अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार आदरणीय विजय जोशी जी सर |
वाह बढ़िया कथा आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी , हार्दिक बधाई आपको ।
आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी, रचना को पसंद करने और अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभारी हूँ
"ये केवल तभी बुरा नहीं देखेंगे, बुरा नहीं कहेंगे और बुरा नहीं सुनेगे जब इनकी जेबें भरी रहेंगी| इंसान हैं बंदर नही// वाह उत्कृष्ट कथानाक ,सधे हुए शिल्प के साथ i हमेशा की तरह आपकी कुशल लेखनी से आई एक सार्थक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय चंद्रेश जी
रचना के मर्म को जानकर और अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार आदरणीया प्रतिभा पांडेय जी|
आदरनीय चन्द्रेश जी , कमाल के पंच के साथ लघुकथा को समाप्त किया, इस का शायद कोई सानी न हो - बधाई हो
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