आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हकीकत के बहुत आसपास है यह रचना, जिसलिए प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैI मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें आ० डॉ वर्षा चौबे जी I
वर्षा जी अच्छा कथानक पिरोया आपने
बढ़िया चित्रण हुआ है आदरणीया वर्षा चौबे दी | कथा मुझे पसंद आई |
तमाशा हो जायेगा, इस डर के मारे लोग पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं कर पाते| इस सार्थक लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया डॉ. वर्षा चौबे जी|
लघुकथा- मर्द
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वैसी ही भीड़ देख कर जीनत चौक गई. कहीं फिर किसी को उस की तरह बेआबरू तो नहीं किया जा रहा है. जीनत की आँखों में अतीत घूम गया, “ ये देखो, भाइयों ! मर्द के वेश में नामर्द.” कहते हुए गुंडों ने उस के कपडे तारतार कर दिए थे. तभी सरिता भीड़ को चरती हुई कृष्ण के रूप में अवतरित हुई थी.
यह याद आते ही जीनत को जोश आ गया. वह भीड़ में घुस पड़ी. वहाँ एक असहाय नारी अपने तारतार हुए कपड़े से अपनी आबरू ढकने की भरसक कोशिश करते हुए, चीखचीख कर पुकार कर इधरउधर दौड़ रही थी. मगर भीड़ तमाशबीन बनी हुई चुपचाप देख रही थी.
यह देख कर जीनत का खून खौल उठा. न जाने कहाँ से ताकत आ गई. वह ताल ठोक कर गुंडों के सामने खड़ी हो गई:
”अबे साले ! नामर्दों ! असहाय औरत को जलील करते हो. शर्म नहीं आती है ? तुम्हारे घर में बहनबेटी नहीं है क्या ? लगता है कि अब तुम जैसे मर्दों से औरतो की रक्षा हम जैसे नामर्दों को ही करना पड़ेगी.”
कहते हुए जीनत ने उस असहाय औरत को खींच कर अपने पीछे कर लिया .
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(मौलिक व अप्रकाशित)
३०/०४/२०१६
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