आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आ.जानकी जी आपकी रचना को २-३ बार पढने पर समझ आई.प्रतिकात्मक रचना के लिए बधाई आपको
आ.तेजवीर जी सुंदर लघु कथा.बधाई अपको
हार्दिक आभार आदरणीय नयना जी!
आदरणीया जानकी जी, शैतान और फरिश्ते की टकराहट हमेशा से चल रही है. शैतान के नाखून गड़ने से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता है. इतने सालों के बाद भी इन्सान जिंदा है. और भविष्य के सपने देखता है. सादर.
आदरणीय तेज वीर जी, बुरा तो ये लगता है कि औरतों के विरुद्ध सारे षडयंत्र एक औरत ही करती है. सुन्दर कथा.सादर.
हार्दिक आभार आदरणीय शुभ्रांशु पांडे जी!
और साज़िशें बुनते रहेंगे।वो भी महज़ ज़र, जोरू और ज़मीन के लिए ? ये कह छलावे से भरी मुस्कान के साथ शैतान अँधेरे में विलीन हो गया----वाह ! साजिशों की बहुत खूब दास्ताँ लिखी है आपने आदरणीया जानकी जी . शैतान कितना भी हुनरबाज क्यों ना हो , आखिर अंत में हार ही उसके हाथ लगती है .छलावे की उम्र बहुत छोटी होती है . बहुत ही तीक्षण कथ्य उभर कर आया है आपकी लघुकथा में . हरिदर से बधाई प्रेषित है .
कन्या भ्रूण -ह्त्या पर आपकी इस कथा ने सामाजिक दृष्टिकोण से आपके द्वारा लेखकीय धर्म व कर्म का सार्थक निर्वाह हुआ है . इस विषय पर सामाजिक संचेतना हेतु बार -बार विविध दृष्टिकोण से लेखन का होना जरुरी है . अभिनन्दन आपको इस लघुकथा के लिए आदरणीय तेजवीर जी .
हार्दिक आभार आदरणीय कांता रॉय जी!
बधाई तेजवीर जी। कथा पॉजटिव नोट पर बंद होती है। कन्या भ्रूण हत्या रोकनी है तो माँ को आगे आना होगा , यह संदेश दूर तक जाएगा। जाना भी चाहिए। चुस्त-दुरुस्त लघुकथा। मजेदार बात गर्भ में भ्रूण ने कही - तुम्हारी सासुजी। उसने एक बार भी ' मेरी दादी ' नहीं कहा। कहती भी क्यों उस राक्षसी को।
बढ़िया सर। हाँ , लेकिन माँ अब भोली नहीं है तेजवीर जी।
हार्दिक आभार आदरणीय प्रदीप नील जी!आपने लघुकथा की जो विस्तार से विवेचना की,उसने मुझे अभिभूत कर दिया!मेरा उद्देश्य सफल हो गया!पुनः आभार!
आदरणीया जानकी जी, इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
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