आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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लघुकथा के इस प्रयास पर आपकी इतनी सुन्दर टिपण्णी पढ़कर आपका आभारी हूँ ,हार्दिक धन्यवाद आदरणीय योगराज प्रभाकर जी
आदरणीय प्रदीप पाण्डेय जी, आपकी लघुकथा प्रभावी है. जैक-एन-जिल को आपने आजके संदर्भ में प्रयुक्त कर वाटर-माफ़ियाओं की कारस्तानियों को साझा किया है. हम आम लोग भी इस तथ्य से परिचित हैं कि पानी का जितना कष्ट है नहीं उससे अधिक लगातार ’मेहनत’ कर के कष्ट ’पैदा’ किया गया है. देश के अब हर क्षेत्र में पानी-उद्योग सबसे कमाऊ उद्योग बन कर उभरा है. हालत तो खराब है ही, आरओ पानी स्टेटस सिम्बल की तरह भी इस्तमाल करने की चीज़ बनता जा रहा है. खैर..
ऐसी संवेदनशील लघुकथा के लिए बधाइयाँ और शुभकामनाएँ.
वैसे, इसलघुकथा को तनिक और सुगठित किया जा सकता था. खुली संभावनाएँ दिख रही हैं. दोनों लाइन में सबसे पीछे खड़े हो गए .. यह पंक्ति ही दो बार लिख गयी है.
आशा है, आपका प्रयास सतत बना रहेगा.
सादर
आपका तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , हाँ गलती से एक वाक्य दो बार आ गया है
बहुत बढ़िया रचना, दिखाने के लिए सारी कवायद और असली जरूरतमंद को कुछ नहीं मिलता| बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना पर
बहुत अच्छी रचना हुयी आदरणीय सर जी!खूब बधाई।सादर नमन।
हाहा बचपन के दो प्यारे पात्र, बेहद सुंदर प्रस्तुति. काम करो चाहे ना करों पर शोर जरूर करो. बेचारे हमारे आम आदमी, जैक और जिल धोखा ही खाते रह गए.
आदरणीय प्रदीप कुमार पांडेय जी बेहतरीन कथा हेतु हृदय से बधाई स्वीकारें।
वाह प्रदीप जी। कमाल की रचना। आपने अपना नाम सार्थक कर ही दिया। बहुत खूब।
वाह्ह्हहह, अब व्यवस्था के नाम पर यही पानी फिर बाँट दिया जायेगा , बहुत ही सुन्दर रचना , आ. प्रदीप कुमार पाण्डेय जी,
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