आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आ.विजय शंकर जी शतरंज की षडयंत्र कारी चाल से आपने खूब राजनीति सीखा दी.बधाई आपको इस रचना के लिए
आदरणीय डा साहब , / धीरे से उन्होंने बिसात उलट दी और , " एक काम याद आ गया बेटे " , कहते हुए उठ लिए। / यह पंक्ति वैसी ही है जैसी हम दोनों हाथ पीठ पीछे छुपा कर बच्चे को बहकाते हैं " चिड़िया ले गई " मगर बच्चा जल्दी ही समझ जाता है और एक दिन वह भी बड़ी चिड़िया उड़ा देता है। बाप जो सिखाना चाहता था , इस कृत्य ने सिखा दिया। मगर यह बात रोचक लगी कि बेटे ने गर्व से पिता जी की ओर देखा।
शतरंज खेल है चालों का,पर राजनीति में चाल और कुचाल दोनों मान्य हैं, उद्देश्य है केवल मात देना.पिता ने ये बात स्पष्ट कर दी है बेटे के सामने,बेहद खूबसूरत और सधी हुई लघुकथा, आदरणीय डॉ.विजय शंकर सर जी,
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी ! बेहतरीन प्रस्तुति !
प्लानिंग
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कैपिसिटी बिल्डिंग में प्रेमशीला नयी-नयी वीपी आयी हैं । देखने से ही कड़क, नो नॉनसेन्स पर्सनलिटी टाइप, और काम करने के उत्साह से लबरेज़ । उनका एक सर्कूलर सारे स्टेट हेड्स के पास चला गया है । सभी से पिछले तीन तिमाही के दौरान अर्जित मासिक लक्ष्य के सापेक्ष सारे के सारे कर्मचारियों की व्यक्तिगत भूमिका के रिकॉर्ड्स माँगे गये हैं ।
शाम आठ बजे थे । नेशनल हेड ऑपरेशन, वीपी स्किल्स, नेशनल हेड ट्रेनिंग, वीपी मार्केटिंग, मतलब कि कम्पनी के सभी ’इमेज चमकाऊ’ अधिकारी सीएफ़ओ के चैम्बर में जमा हैं ।
’यार, नो डाउट अवर सीईओ इज अ विजनरी ! मगर उनके ख़यालों में बरसात होने लगे और मेंढकी का ख़्वाब आ जाये.. तो क्या ये उसको भी कम्पनी में बुला लायेंगे ? यू नो, मेंढकी विल ऑलवेज रिमेन अ मेंढकी !..’ - नेशनल हेड ट्रेनिंग हत्थे से उखड़े हुए थे ।
वीपी मार्केटिंग ने कस के फिकरा कसा - ’इसकी तो एकदम से सुलगी पड़ेली है रे ! वाकई ये है भी इसी के ऊपर डाइरेक्ट अटैक ! ट्रेनिंग के पैरेलेल कैपिसिटी बिल्डिंग का फण्डा कुछ समझ में नहीं आया बाप !’
सीएफ़ओ एकदम से वीपी मार्केटिंग को लताड़ते हुए बोल उठे - ’यू नो, तू भी है इस रेंज में ! बता क्या किया है तूने इन दो सालों में ?.. तुम्हारा बजट एण्ड प्लानिंग स्साला मेरा टेंशन हुआ करता है..’
’सर प्लीज.. पहले बताइये, इस सर्कुलर का किया क्या जाय ?’ - नेशनल हेड ऑपरेशन पूरे तनाव में थे - ’यूपी स्टेट हेड का शाम से चार बार फोन कॉल आ चुका है । अल्टीमेटली उसी ने तो लगातार दो सालों से हण्डरेड-फिफ्टी का टार्जेट शो किया हुआ है.. तो अपन सब की दाल रोटी चल रही है.. अब तो कुछ और स्टेट्स उसके फ़ण्डे पर उछाल मारने लगे हैं..’
’यार, ये जानती क्या है बिजनेस ? हाउ टार्जेट इज एचिइव्ड इज नॉन हर बिजनेस ! मास्टरी करे न वो, ह्वॉट शी इज मिण्ट फ़ॉर..’
’अब आग मत उगलो.. ’ - वीपी स्किल्स ने गंभीर स्वर में कहा - ’प्रेमशीला कण्ट्रोल में रहेगी.. मगर एक उपाय करना होगा । वो ये कि उसको सही रिपोर्ट दे दी जाय.. ’
’क्या ? .. हमें मरवाओगे क्या सर ? आ बैल हमें मार ?.. ’
’रुको यार ’ - वीपी स्किल्स ने अपनी बात ज़ारी रखी - ’और उससे कहा जाये, कि करीब हर स्टेट में आधे से अधिक कर्मचारी कुछ नहीं करते । सो सारा प्रेशर बाकी कर्मचारियो पर रहा करता है । देन शी शुड प्लान ए प्रोसेस ऑव कैपेसिटी एनहान्समेण्ट.. ऐसे में सात से आठ महीना निकाल दो.. इस बीच नो टार्जेट फ़्रॉम टीम ऑपरेशन एट ऑल !.. अगर कुछ स्टेट हेड्स का विकट गिरता है तो गिरने दो.. बड़े खेल कुछ स्मॉल फ़्रॉइ कटते ही हैं..’
’तो फिर कम्पनी का क्या होगा सर ?..’ - नेशनल हेड ऑपरेशन ने अचकचाते हुए कहा ।
’मैं हूँ न अपनी टीम के साथ !.. तुम लोगों की टीम के सामने मेरी टीम का परफ़ॉर्मेन्स आजतक दबा हुआ ही दिखता रहा है । नाउ माय टीम विल बी सीन विद हिट्स ! ’ - वीपी स्किल्स ने इत्मिनान से कहा ।
’यानी, आपकी तो चमकने वाली है गुरु ! बिल्ली के भाग से छीका नहीं छींके ?.. ’
’शायद !.. मगर सोच लो ! मेरा डिपार्टमेण्ट ऑपरेशन के लगुए-भगुए में नहीं आता.. सो हम ऐसे भी सेफ़ हैं । प्रॉब्लेम इस लाइंग विद यू ऑल..’
’वो तो ठीक, मगर फिर प्रेमशीला के प्रोसेस का क्या होगा ?’
नेशनल हेड ऑपरेशन एकदम से चीख पड़े - ’उसका प्रोसेस जायेगा तेल लेने ! आठ महीनों में प्रेमशीला हो जायेगी इस कम्पनी में एक भूली-बिसरी कहानी !’ - कहते हुए उसने वीपी स्किल्स के हाथ चूम लिये ।
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(मौलिक और अप्रकाशित)
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रीय जी, आपने जिस उत्साह से इस प्रस्तुति को अनुमोदित किया है वह मेरे लिए वस्तुतः आह्लादकारी है, हार्दिक धन्यवाद आदरणीय.
//बीचबीच में अंग्रेजी के शब्द मखमल में टाट के पैबन्द की तरह मेरी आँख में आ रहे थे. //
मैं आपकी इस उक्ति का अब क्या करूँ, आदरणीय ओमप्रकाश जी, कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ ? आपने जिस संवेदनशीलता के साथ कथा को स्वीकार किया है, उसके बाद आपसे ऐसा सुनना तनिक उलझन में डाल रहा है. आप संभवतः कथा के पात्रों और उस वातावरण को उस शिद्दत से नहीं महसूस कर पाये, जो आप जैसे पाठक से अपेक्षित था, आदरणीय. जिन पात्रों के बीच ’स्टेट हेड्स’ तक ’स्माल फ़्राइ’ के तौर प्रयुक्त हो रहे हैं, उनका स्तर क्या आप समझ रहे हैं, आदरणीय ? और ऐसों के बीच की भाषा का अंदाज़ कैसा होगा, यह भी बताने की आवश्यकता है ? सर्वोपरि, आदरणीय, कथा की भाषा तो सामान्य हिन्दी ही है. अलबत्ता, संवाद अवश्य पात्रों के हैं, जो उनके आचरण, उनकी टुच्चई, उनके कांइयाँपन और उनके वातावरण के अनुरूप ही है.
सादर
बहुत ही जीवंत चित्रण किया है आ० सौरभ भाई जीI कोरपोरेट जगत में बिलकुल ऐसा ही होता है, मैं ऐसे कई षड्यंत्रों का चश्मदीद अथवा हिस्सा रहा हूँI ऐसी हिस्ट्री-जुग्राफी अक्सर यूँ ही बनाई जाती है वहाँI लघुकथा ने बेहद प्रभावित किया, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI
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