आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आद० नयना जी ,लघु कथा पर आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत- बहुत आभार |
लघुकथा – आक्रोश
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गणितविज्ञान के साथ संस्कृत की स्थिति देख कर निरीक्षक महोदय बिफर पड़े, “ बच्चों का स्तर देखा. इन्हें हिंदीसंस्कृत भी पढ़ना नहीं आती है.”
“ जी सर ! इन्हें देखिए.” शिक्षक ने निरीक्षक को कहा,” ये तो अच्छे है. इन्हें किस ने पढ़ाया है?”
“ सर ! यह हम ने 15 दिन मेहनत कर के इन्हें पढ़ना सिखाया है. वरना प्राथमिक विद्यालय वाले पढ़ाते ही नही हैं. वे 5-5 शिक्षक है. दिनभर बैठे रहते है. बच्चे आपस में धमाल करते है और वे गप्पे मारते रहते हैं. वो देखिए. अभी भी बैठे हुए हैं.”
माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक ने बोलना जरी रखा, “ सर , वे होमवर्क नहीं देते हैं. बारीबारी से गेप मरते है. बालसभा नहीं कराते है. क्यों बच्चों मैं सही कह रहा हूँ ना ?”
“ जी सर .”
“ उन के यहाँ दोपहर का भोजन भी गुणवत्ता युक्त नही मिलता है.” यह सुन कर निरीक्षक महोदय आगबबूला हो गए, “ चलो ! पहले उधर देखते हैं.”
“ कहाँ है दोपहर का भोजन. माध्यमिक और प्राथमिक विद्यालय में अलगअलग गुणवत्ता का भोजन ? बच्चों का भोजन भी शिक्षक खाने लगे. शर्म नहीं आती है ?” साहब गुस्से में बोले जा रहे थे.
इस पर प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक ने निवेदन किया , “ सर ! यह संभव नहीं है. दोनों विद्यालय में एक जैसा भोजन बनता है. चाहे तो आप देख ले ?”
“ क्यों भाई ! अलगअलग भोजन क्यों नहीं बन सकता हैं ? “
“ साहब जी, दोनों स्कूल का भोजन एक ही जगह और एक ही समूह बनाता है.”
“ अच्छा ! मगर वह तो कहा रहा था कि ....” निरीक्षक महोदय कक्षा का निरिक्षण करते हुए अपनी बात अधूरी छोड़ कर कहने लगे, “ बच्चे ठीक है. मगर वह आप के विरुद्ध आग क्यों उगल रहा था ? “ आखिर निरीक्षक ने पूछ ही लिया.
“ सर ! मैं ने और जिला शिक्षा अधिकारी महोदय ने उस की बात नहीं मानी थी, इसलिए वह हम दोनों से नाराज है ?”
“ क्यों भाई ? ऐसी क्या बात थी ?”
“ साहब ! वह मुझ से आपसी स्थानान्तर करवाना चाहता था.”
“ क्यों भाई ! उसे वहां क्या दिक्कत है ?”
“ उस का कहना है कि योग्य व्यक्ति अपनी जगह होना चाहिए.”
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(मौलिक, अप्रसारित व अप्रकाशित)
बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय सर जी!हार्दिक बधाई।सादर
हर कोई अपना आक्रोश अपने तरीके से प्रकट करता है यहाँ तो शिक्षक ही अपना स्वार्थ पूरा न होते देख झूठा आक्रोश प्रकट करने में लगा है प्रशासन के आपसी तनाव का खामियाज़ा भी बच्चों को भुगतना पड़ता है | बढ़िया प्रस्तुति आद० ओमप्रकाश जी हार्दिक बधाई
अधिकारीयों की आपसी खींचतान और स्वार्थ के चलते ऐसी स्थितियां हमारे देश में आम हैं , सही रग पर हाथ रखा है आपने शिक्षा व्यवस्था की . बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय ओमप्रकाश जी
आदरनीय प्रतिभा पाण्डे जी आप का कहना सही है. इसी वजह से बच्चों का भविष्य बर्बाद होता है. यह एक सही वाकया है. शुक्रिया आप की अमूल्य व अतुल्य प्रतिक्रिया के लिए .
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