आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरनीय उस्मानी जी, उम्दा लघुकथा के लिए बधाई
हमारे समाज में हो रहे नैतिक पतन पर चल रही बहस को आपने मुद्दा बनाया है जिसके लिए आपको हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय उस्मानी जी , पर इस वाद विवाद में प्रदत्त विषय उतना खुल कर नहीं आ पाया है जितना अपेक्षित है
अच्छी लघुकथा है भाई उस्मानी जीI जिन पक्षों का इस कथा में ज़िक्र है, वे सभी अपने हिसाब से तर्क देकर आपने को कसूरवार न मानने की कवायद में लगे हुए हैI और उनका आक्रोश जनता के प्रति फूटता नज़र आता हैI यह 481 शब्दों की कथा थोड़ी और चुस्त--दुरुस्त की जा सकती थीI
"यही तो हमारा सोच है!" दुरुस्त नहीं है, क्योंकि सोच को स्त्रीलिंग की तरह लिया जाता है अत: "यही तो हमारी सोच है!" लिखना सही हैI बहरहाल, इस प्रस्तुति पर बधाई प्रेषित हैI
मोहतरम जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती नए अंदाज़ और ख़यालात के साथ सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
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