आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हौसला बढ़ाने केलिए सादर धन्यवाद आदरणीय राजेन्दर गौर साहब.
सर्वोप्ररि, मैं ’सौरभ’ ही ठीक हूँ, ’सौरव’ का एक तो कोई अर्थ नहीं होता, दूसरे, यह शब्द मेरे लिए अन्यथा संज्ञा हो जायेगी.
बढ़िया और एकदम अलग "इश्टाईल" की लघुकथा कही है आ० सौरभ भाई जीI भाड़े के दंगाई भले ही कोई काण्ड करते समय आगा-पीछे न देखते हों लेकिन उनके पीछे काम करने वाले दिमागों के भी अपने एजेंडे हुआ करते हैंI उन्ही दिमागों में दबे उबाल पर से ढक्कन इस लघुकथा के माध्यम से उठाया गया हैI रचना अपने मकसद में कामयाब रही हैI
शिव-ताण्डवस्तोत्र की रिंग-टोन का घनघना उठना, बिना कहे बहुत कुछ बयान कर गया थाI इसके बाद "राम राम" या "’वालेक्कुमस्सलाम" ने आइसिंग ऑन दि केक का काम कर दियाI हार्दिक बधाई प्रेषित है जिल्ले-इलाही!!!
सदाशयता के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय योगराज भाईजी.
’.. नेताजी, अपना तो येइच फण्डा है.. हाथ में जो काम लिया, फिर नहीं झाम लिया ! काम में कोई लोचा नईं मांगता अपुन को !’-------वाह ! क्या खूब कथानक चुना है आपने आदरणीय सौरभ भी ,कथा पढ़कर मनवा झूम उठा है .
खून के इस खेल में कौन कब किसका खिलौना बन जाए कोई भरोसा नहीं . काली करतूतों के मलबे में कभी-कभी स्वयं के दब जाने का भी भय रहता है . भाई लोगों की भाषा ने कथा में चार चाँद लगा दिया है . बहुत- बहुत बधाई आपको इस शानदार लघुकथा के लिए .
सादर धन्यवाद आदरणीया कान्ताजी.
दुर्जनों की संगति ऐसी ही होती है। लोग समझते हैं कि दुर्जन खरीद लिया जबकि बिक स्वयं हो चुके होते हैं। इतिहास तो यही बताता है। फिर भी राजनीति झुकती उधर ही है। सीधी सच्ची राह तो न दिखती है , न समझ में आती है। बहुत गम्भीर विषय को उद्भासित किया है आपने अपनी लघु-कथा में , बहुत बहुत बधाई , आदरणीय सौरभ पांडेय जी , सादर।
आदरणीय विजय शंकर भाईसाहब, आपकी गहन वैचारिक टिप्पणियाँ आयोजन के लिए दिशानिर्देशक के समान होती हैं. आपने प्रस्तुति को मान दिया इस हेतु हार्दिक आभार
मोहतरम जनाब सौरभ साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
शुक्रिया भाई साहब
आदरनीय सौरभ पाण्डेय जी इस शानदार व वजनदार लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करे.
आद.सौरभ पाण्डेय जी एक समझे-समझाए गेम को आपने जिस रोचक अंदाज़ में व्यक्त किया वह बहुत प्रभावशाली है.संवाद सम्प्रेषण गज़ब.बम्बइया हिंदी, चटक झन्नाटेदार,किसी हिंदी फिल्म के सीन को प्रस्तुत करती कथा.
आगे से प्रयास रहेगा, इस विधा में कुछ बेहतर हो पाये, आदरणीया आशा जुगरान जी. हार्दिक धन्यवाद
और, सादर निवेदन है, कि किसी थ्रेड में टिप्पणी न कर दिया करें.
सादर
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