आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय सुधीर जी, बहुत सुन्दर कथा. सादर.
आदरणीय सुधीर जी। रामलीला का जिक्र छेड अपने बचपन याद दिला दिया."मौक़ा पाते ही उसने झटके से माइक झपटा और भभक उठा।" गजब की पंक्ति है . ये बात सच है मौके दिये नही जाते ना मिलते है उन्हे तो झपटना पडता हैं. बहुत बहुत बधाई
वैलेंटाइन डे – (लघुकथा) –
कैप्टन रवि सेना में इंजीनियर था! एक महीने की छुट्टी आया था! अगले हफ़्ते बीस फरवरी को उसका विवाह था! उसकी मंगेतर रेखा डाक्टरी पढ़ रही थी! दौनों परिवारों की रज़ामंदी से वे दौनों एक साथ कुछ समय बिताने के लिये घर से बाहर निकले थे! अतः वे शहर के मध्य स्थिति बड़े से पार्क में चले गये! पार्क के कोने में एक छोटा सा मंदिर भी था! दौनों मंदिर में हाथ जोड़ कर मंदिर के बाहर वाली दीवार के सहारे बैठ गये! दौनों बेहद खुश थे! अपने अपने अतीत के किस्से सुना रहे थे! भविष्य की योजनायें बना रहे थे! कभी हँस रहे थे, कभी गुनगुना रहे थे! दौनों के चेहरों से नूर टपक रहा था! सारे ज़हाँ से बेखबर अपनी ही दुनियां में खोये हुए थे!
अचानक कुछ उन्मादी युवकों का झुंड हाथों में डंडे और सरिये लिये आया और उन दौनों पर टूट पड़ा! वे लोग वैलेंटाइन डे के विरोधी थे! उन्होंने रवि और रेखा को कुछ कहने सुनने का अवसर ही नहीं दिया! पल भर में मुस्कुराते हुए चेहरे लहू लुहान जमीन पर पड़े थे!
मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा एक पागल जैसा दिखने वाला भिखारी , यह सब नज़ारा देख रहा था! वह तमतमा कर आवेश में उठा और उन दौनों के बहते लहू से मंदिर की दीवार पर, यह लिख कर चला गया!
“यहाँ परिंदों के चहकने पर पाबंदी है”!
मौलिक व अप्रकाशित
“यहाँ परिंदों के चहकने पर पाबंदी है”!--इस एक लाइन ने लघुकथा में जान डाल दी. सुंदर व सुघड़ लघुकथा. बधाई आदरनीय तेज वीर सिंह जी .
हार्दिक आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी! लघुकथा की सराहना हेतु!
पंच लाइन ने कथा को गजब की ऊंचाई दे दी . हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी इस सशक्त लघु कथा के लिए
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे जी! लघुकथा की सराहना हेतु!
“यहाँ परिंदों के चहकने पर पाबंदी है”! ये पञ्च लाइन दिल में सीसे की तरह उतर गई
आक्रोश की अनूठी मिसाल भिखारी का ये दीवार पर लिख देना |
शानदार लघु कथा हुई आद० तेजवीर सिंह जी दिल से ढेरों बधाई लीजिये |
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी! लघुकथा की सराहना हेतु!
हार्दिक आभार सुनील जी!आपने जिस भूल का उल्लेख किया, उसके लिये क्षमा प्रार्थी हूं!प्रधान संपादक जी से निवेदन करूंगा, यदि संभव हो तो उसे सुधार दें!
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