आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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// आज के शाशक तो जनता के सेवक होते हैं , जनता मालिक - स्वामी होती है , सेवक थोड़े प्रायश्चित करते हैं "// , क्या सटीक बात कही है आपने.. प्रदत्त विषय पर सटीक कथा ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय डॉ विजय शंकर जी ..सादर
//प्रायश्चित सदैव वह करता है जो अपने उत्तरदायित्व को समझता है//
बहुत सुन्दर सन्देश दिया है इस पँच-पंक्ति के माध्यम से आ० डॉ विजय शंकर जी। लघुकथा बेहद प्रभावशाली है, किन्तु सम्प्रेषण थोड़ा और कसावट मांग रहा है। बहरहाल प्रदत्त विषय को बखूबी परिभाषित इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है।
("शाशक" को "शासक" कर दिया है।)
मोहतरम विजय शंकर साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती हुई और राजनीति पर कटाछ करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
प्रायश्चित सदैव वह करता है जो अपने उत्तरदायित्व को समझता है ,, बहुत गहरी बात कही है आपने आ. डा.साहब ! बधाई !!
अच्छा प्रयास है आदरणीय सर ! /आज के शासक तो जनता के सेवक होते हैं , जनता मालिक - स्वामी होती है , सेवक थोड़े प्रायश्चित करते हैं/ यह एक पंक्ित लोकतंत्र पर बहुत तीक्ष्ण व्यंग्य कस रही है। / पुराने जमाने में , अब के शासक क्यों नहीं करते प्रायश्चित , जबकि ये भी अक्सर ऐसे काम करते हैं कि देश को काफी धन - जन क्षति उठानी पड़ती है। "/ इस पंक्ित में विराम चिन्हों के प्रति लापरवाही से संवाद असर नहीं डाल रहा। / पुराने जमाने में ! , अब के शासक क्यों नहीं करते प्रायश्चित ?, जबकि ये भी अक्सर ऐसे काम करते हैं कि देश को काफी धन - जन क्षति उठानी पड़ती है। "/ यहां '!' और '?' विराम चिन्ह होने चाहिए थे। और कथा की अंतिम पंक्ितयां /- स्वामी होती है , सेवक थोड़े प्रायश्चित करते हैं " , थोड़ा रुक कर फिर बोले , " जनता करती है न , मालिक के रूप में , रोज ही करती , सह सह कर , गलत सेवक को चुन कर। "
माहौल अचानक शांत और गम्भीर हो गया। ताऊ जी फिर बोले , " प्रायश्चित सदैव वह करता है जो अपने उत्तरदायित्व को समझता है , प्रश्न बड़े छोटे का नहीं होता है। जो अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझता है और अपनी गलतियों का दोषारोपण दूसरों पर करता है वह होशियार नहीं होता है , वरन स्वभावतः गुलाम तुल्य होता है। "/ अनावश्यक सी लग रही है जो लघुकथा को बोझिल सा बना रही हैं। सादर शुभकामनाएं ।
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