For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाय(लघुकथा)राहिला

"देखो भूरी बिलैया भूरे कान,देखो भूरी बिलैया भूरे कान"रसोई सूनी होते ही नयी बहू द्वारा नए सिरे से सजाये नॉनस्टिक बर्तन ,सास के कहने पर रख छोड़ी प्रसाद बनाने की छोटी सी एल्युमीनियम की कड़ाही को फिर से चिड़ाने लगे।उसका जी किया वो जोर ,जोर से रो ले।
"हे भगवान इससे तो अच्छा होता,मुझे भी अपने सगे सम्बन्धियों के साथ रसोई निकाला मिल जाता।"कहते हुए दो आंसू आँखों से लुढक पड़े ।लेकिन किसी सयाने ने खूब कहा कि इतिहास खुद को दोहराता है। उसे वो वक्त याद आने लगा जब उनके आने से इसी रसोई के पुराने पीतल के बर्तनों को हटा दिया गया था,सिवा एक पतीली के।फिर उसने भी तो किस क़दर उसे इसी तरह...,अनायास उसकी चोर नज़र ऊपर तांड पर चली गयी ।जहाँ से पीतल की पतीली झांक रही थी। और उसके मुख पर अजीब सी कटीली मुस्कराहट थी।
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 614

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 15, 2016 at 4:33pm

बहुत ही सुन्दर ढंग से अपने समाज की व्यापक हो रही विरूपताओं का चित्रण किया है। .... नवीनता की ओर उन्मुख इंसान किस तरह पुरानी रीत रिवाज पुराने रिश्तों एवं घर के बूढ़े पुराने सदस्यों का अनादर करता है। साथ ही समय का पहिया चलता है...आप जो देंगे वक़्त आप को वही लौटा के देगा की सुन्दर सीख देती हुई रचना 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 15, 2016 at 4:08pm
बिम्बों का बखूबी इस्तेमाल करके सुन्दर एवं प्रभावी रचना कर्म करने के लिए हार्ड8के बधाई आदरणीय राहिला जी।सादर
Comment by Ravi Prabhakar on August 14, 2016 at 7:42pm

ब्रह्माण्ड का कण-कण परिवर्तनशील है। जो परिवर्तन का पहले से ही अनुमान लगा लेता है वही अपने आप को परिस्तिथियों के हिसाब से ढालकर सफल होता है। परिवर्तन का सामना करने का सर्वोत्तम उपाय है कि उसका स्वागत किया जाए। पुराना जाता है तभी नया आ सकता है ,यही संसार का नियम है,सृष्टि का नियम है। परिवर्तन के आने से ही जीवन आगे बढ़ता है फिर चाहे यह परिवर्तन शुभ हो या अशुभ। जीवन के शास्‍वत सत्‍य को इस प्रगतिवादी एवं प्रतीकात्‍मक लघुकथा के माध्‍यम से बाखूबी बयां किया है आपने। इस बार भी लघुकथा के शीर्षक चयन का लेकर थोड़ी लापरवाही बरत गई आप मोहतरमा । बहरहाल हार्दिक शुभकामनाएं । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service