आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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मोहतरमा कल्पना साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
बहुत बढ़िया लघु कथा हुई खेती की जमींन को कंक्रीट में तब्दील होते बहुत बुरा लगता है किसान खेती की जमीन को अपनी माँ समझते हैं किन्तु आज की पीढ़ी को दौलत के आगे कुछ नही सूझता कहीं सरकार दबाव बनाकर बेचने को मजबूर कर देती है कहीं लालच में अपने बाप दाद की विरासत को खुद बेच देते हैं |बहुत बहुत बधाई आपको प्रिय कल्पना जी |
बहुत बढ़िया लघु कथा कही है प्रदत्त विषय के साथ पूरा न्याय करती हुई ..बधाई स्वीकार करें आदरणीया कल्पना जी
आ.कल्पना सखी देर आई दुरस्त आई. बहूत बढिया लघुकथा कही इस बार. पंच लाइन “उस धुएँ में उड़ गए बेटे!” गजब. बधाई स्विकारो
अपनी अपनी समझ से अपने अपने ढंग की विरासत दे दी दोनों मित्रों ने अपनी संतानों को.. गहरा संदेश देती कथा पर बधाई कल्पना जी.
वाह, आदरणीया कल्पना दी, //“उस धुएँ में उड़ गए बेटे!”// पंच लाइन वास्तव में झकझोरने वाली बनी है| बहुत बहुत बधाई इस सार्थक रचना के सृजन हेतु|
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