आदरणीय साथिओ,
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अच्छा वाला आईना
फ्लोरेंस की मेहनत पूरी हो चुकी थी। उसने पोस्ट का बटन दबाया और अपनी फोटो अपलोड कर दी। रोज की तरह आज भी कॉलेज से सीधे घर न जा कर वह उसी पार्क में बैठी थी जिसकी शहर में अपनी ख़ूबसूरती के कारण एक अलग पहचान है। अपलोड होने के बाद फ्लोरेंस ने अपनी फोटो दोबारा देखी। उसके चेहरे पे मुहांसे का छोटा सा दाग़ था जो पता नहीं कैसे उसकी नज़रों से बच गया। उसने पोस्ट डिलीट की और उसे फिर से एडिट किया। पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद फ्लोरेंस ने वह फोटो पुनः अपलोड कर दी।
फ्लोरेंस अपनी प्रोफाइल को स्क्रॉल करके देख रही थी। वहाँ उसकी ढेर सारी तस्वीरें पड़ी थीं। कुछ इस पार्क की थीं तो कुछ रेस्टोरेंट की। कुछ सिटी मॉल की तो कुछ सिनेमा हॉल की। प्रोफाइल में कुछ फोटो एयरपोर्ट और विदेशों की भी थीं जैसे ऑस्ट्रिया, जर्मनी, इटली और रोम। इनमें से रोम वाली तस्वीर उसे सबसे ज़्यादा पसन्द थी। आख़िर यही तो उसकी वह तस्वीर थी जिसमें उसकी ख़ूबसूरती को सबसे ज़्यादा सराहा गया था।
थोड़ी देर बाद फ्लोरेंस की इस ताजा पोस्ट पर कुछ लाइक और कमेण्ट आये। उसने सभी कमेण्ट्स को लाइक किया और उनका जवाब दिया। पर केविन का इंतज़ार उसे अभी भी था। सूरज ढल रहा था। फ्लोरेंस उठी और अपने घर की ओर चल दी।
फ्लोरेंस की माँ नहीं है। वह अपने पिता के साथ अकेली रहती है जो कि एक फैक्ट्री में काम करते हैं। फ्लोरेंस ने दरवाज़ा खोला। एक चिरपरिचित गंध धूल के साथ उसके पास से गुजरी। उसने पिता से कई बार कहा कि कहीं और मकान ले लें पर वो हर बार यही कहते कि इससे बेहतर और कम किराये पर घर कहीं भी नहीं मिलेगा। वह क्या कर सकती थी। सीधे अपने कमरे में जाने के बाद उसने पर्स से फ़ोन निकाला। नेट अभी भी ऑन था। ये क्या! उसकी खुशी का ठिकाना नहीं। ढेर सारे लाइक्स के साथ केविन का कमेण्ट भी! उसने अपनी तस्वीर को चूमा और नाचने लगी।
वह पूरे कमरे में उन्मुक्त हो कर घूम रही थी। उसका चेहरा सुर्ख़ लाल हो चुका था। तभी उसकी नज़र आईने पर पड़ी। वह रुक गयी। उसमें एक बदसूरत सा चेहरा था, निहायत बदसूरत। वह उसकी तरफ देख कर घूर रहा था। फ्लोरेंस डर गयी और कांपने लगी। उसे घबराते देख आईने का चेहरा ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। उसे उसकी सारी अच्छी तस्वीरें उससे दूर जाती दिख रही थीं, आईने के अंदर। पार्क, रेस्टोरेंट, मॉल, एयरपोर्ट और रोम वाली भी। वह ज़ोर से चीखी:
"बदसूरत आईने! मुझे नफ़रत है तुमसे।"
उसने आईने को उठाया और खिड़की से बाहर फेंक दिया।
(मौलिक व अप्रकाशित)
हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी। सुन्दर लघुकथा।
रचना प्रदत्त विषय के साथ पूरी तरह न्याय कर रही है, जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित हैI भाई महेंद्र कुमार जी, मुझे लगता है कि रचना को 10-15 प्रतिशत छोटा बनाया जा सकता थाI
वाह... फेसबुकिया आत्ममुग्धता को केन्द्रित कर बढ़िया रचना ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको भाई महेंद्र जी
आ.महेंद्र कुमार जी इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
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