आदरणीय साथिओ,
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"रहने दो राजूभाई, तुमको नहीं पता, इसी बहाने मैं इस मंदिर का कर्ज उतार रहा हूँ| इसी मंदिर के सामने मेरी माँ को किसी ने तब खाना खिलाया था, जब वो बेहद भूखी थीं"|// बेहद खूबसूरत कथ्य .सहज प्रवाह ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय विनय जी इस सारगर्भित रचना के लिए
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।बेहतरीन प्रस्तुति ।
आदरणीय विनय कुमार जी /इसी मंदिर के सामने मेरी माँ को किसी ने तब खाना खिलाया था, जब वो बेहद भूखी थीं"|/ एक क्षण विशेष को लेकर रची गई प्रस्तुत लघुकथा न केवल प्रदत्त विषय से पूर्णरूपेण न्याय कर रही है बल्िक एक बहुत ही साकारात्मक और सार्थक संदेश भी दे रही है। 'चचा' शब्द का इस्तेमाल एक समुदाय विशेष के लिए करना अापके लेखकीय कौशल का एक उत्कृष्ट नमूना है। सादर शुभकामनाएं ।
मुहतरम जनाब विनय कुमार साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघुकथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
अंधेरी राहों के मुसाफिर (लघु कथा)
प्लेटफार्म पर गाडी खडी हुयी ही थी कि एक सजीला युवक मेरे पास आया और अपना ब्रीफकेस मुझे थमा कर बोला –‘अंकल ज़रा इसे देखिएगा , मैं अभी आया . इससे पहले कि मैं कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करता वह अंतर्धान हो गया. गाडी चल पड़ी और वह नहीं आया. स्टेशन दर स्टेशन गुजरते रहे पर युवक का कही पता न था. ब्रीफकेस को लेकर मेरे मन में अनेक शंकाये उत्पन्न हो रही थी. यहाँ तक कि मेरी मंजिल आ गयी. चारबाग स्टेशन पर चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात देखकर मुझे कुछ अचम्भा भी हुआ. ब्रीफकेस को लेकर मैं पहले से ही व्यग्र था. अचानक किसी ने मेरी जेब में हाथ डाल दिया. मैं संभलता इससे पहले ही हाथ डालने वाला फरार हो गया. मैंने जेब की सामग्री चेक की. कुछ भी गायब नहीं था. एक कागज़ का टुकडा अलबत्ता उसमे अलग से बरामद हुआ. उसमे लिखा था –‘Briefcase to home . no police . no smartness ‘
मेरा दिल काँप उठा, यह मैं किस अंधेरी राह में फंस गया. सावधानी बरतते हुए किसी तरह घर आया. ब्रीफकेस मुझे किसी संपेरे की टोकरी सा लग रहा था. लगभग दो घंटे बाद श्रीमती जी ने आकर सूचना दी –‘कोई सज्जन आपसे मिलने आये है, ड्राइंग-रूम में आराम फरमा हैं.’ मैं समझ गया वही युवक होगा . ब्रीफकेस लेकर मैं तुरंत वहां पहुंचा. मगर यह कोई और ही सज्जन थे . उतनी ही उम्र. वैसे ही सजीले. ‘अंकल, ब्रीफकेस लेने आया हूँ ‘- उसने बिना किसी प्रस्तावना के कहा –‘ आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. इसमें दो करोड़ का माल था जो आप सुरक्षित लाने में कामयाब हुए ‘
‘मगर --- यह मुझे आपसे नहीं मिला था ?’
‘सो व्हाट ? वह हमारी गैंग का दूसरा सदस्य था. आप यह पचास हजार रुपये संभालिये और यदि आगे भी हमारी मदद के इच्छुक हों तो बताइए, आप कुछ ही दिनों में करोड़ों में खेलने लगेंगे, पर सोच लीजिये इस राह में entrée तो है exit नहीं है .
मुझे लगा मेरी शरीर पर हजारों बिच्छू रेंग रहे हैं. मैं किन्कर्तव्यविमूढ़ सा हो गया. अंधेरी राहों के मुसाफिर मुझे भी अपनी राह पर घसीटने को आतुर थे. पर अब तक मैंने अपने को संभाल लिया था . मैंने पचास हजार की गड्डी वापस करते हुये उससे दृढ स्वर में कहा –‘नो, थैंक्स जेंटलमैन, जो कुछ हुआ आपका प्लान था पर मेरे लिए महज एक इत्तेफाक. मुझे आपके प्रस्ताव में कोई रूचि नहीं है .’
युवक चला गया पर जाते-जाते सावधान कर गया-‘ Uncle . Please Keep it up to you for sake of your life .’
(मौलिक व अप्रकाशित )
बिलकुल सजीव लगता है पूरा परिदृश्य, बढ़िया रचना विषय पर| बहुत बहुत बधाई आपको
सादर आभार .
आपकी इस लघुकथा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह प्रदत्त विषय बहुत ही सुन्दरता से परिभाषित हुआ है, जिस हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है अग्रज आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जीI अब इस कथा के कुछ बिन्दुओं पर मेरे किन्तु:
1. अंग्रेजी लिपि बदमजगी पैदा कर रही है, ये सब देवनागरी में लिखा जा सकता हैI
2. // मैंने जेब की सामग्री चेक की// "चेक" के बदले कोई उपयुक्त हिंदी शब्द नहीं मिला प्रभु?
3. //‘मगर --- यह मुझे आपसे नहीं मिला था ?’// यहाँ कहा जा रहा है या कि प्रश्न पूछा जा रहा है?
4. रचना पोस्ट करते समय आप "बोल्ड" और "नॉन लेफ्ट एलाईंड" का मोह कब त्यागेंगे? (खासकर शीर्षक लिखते हुए)
आ० अनुज . आपकी प्रतिक्रया से संतुष्टि मिली . आपके निर्देश का भविष्य में पालना अवश्य करूंगा . सादर .
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