आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आदरणीय जानकी वाही जी, प्रदत्त विषय को परिभाषित करने का आपका प्रयास प्रशंसनीय है। एक अनछुए कथानक पर आपकी कोशिश श्लाघनीय है। आदरणीय प्रधान संपादक जी का बताया हुआ बिन्दु भी विचारणीय है। बेशक कथानक नया और बहुत बोल्ड है परन्तु इस लघुकथा का उद्देश्य मेरी समझ से परे है। ओवर आल कथा से क्या संदेश मिल रहा है। इसके पठन से क्या किसी की संवेदनाएं प्रभावित हो रही हैं? शायद नहीं । क्या किन्नर संस्था की ओर से बांटे जाने वाले 'सामान' का उपयोग करने में सक्षम हैं ? कहीं आपकी कथा किन्नरों में समलैंगिकता का समर्थन तो नहीं कर रही? संस्था सरकार की ओर से मुफ्त बंटने वाले 'सामान' को किन्नरों में बांट कर कौन सा समाज भलाई का कार्य कर रही है? क्या संस्था को किन्नरों को ऐसे घृणित काम से निकालने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं करना चाहिए? /हमारी संस्था तो उन्हें एच .आई.वी. के प्रति जागरूक करने की पहल कर रही है।"/ जागृत करने की संस्था की यह अनूठी पहल समझ से परे है। साहित्य की उपयोगिता के सबंध में वर्डज़वर्थ ने कहा है कि साहित्यक कृति या तो पाठक् के मन पर अच्छा प्रभाव डाले, उसके ज्ञान में बढ़ौतरी करे या उसके मानसिक और नैतिक सुख के लिए उपयोगी हो । इसका मनोरथ समाज को ऊँचाई पर ले जाना होता है। बहरहाल ! प्रस्तुत लघुकथा विषयानुरूप है और विषय को परिभाषित तो कर ही रही है। सादर
डॉ रवि प्रभाकर जी, आपकी इस विषद टिप्पणी के आलोक में डॉ बातें स्पष्ट करना चाहूँगा:
1. यह सामान पोटेंशिअल क्लाइंट्स के लिए बाँटा जा रहा हैI
2. देश के बहुत से रेड लाईट एरिया में समाज सेवी संस्थाएँ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन सहित) ये सामान वितरित करती है, तो क्या वे इस अवैध धंधों को बढ़ावा देती हैं?
आदरणीय प्रधान संपादक जी, /देश के बहुत से रेड लाईट एरिया में समाज सेवी संस्थाएँ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन सहित) ये सामान वितरित करती है, तो क्या वे इस अवैध धंधों को बढ़ावा देती हैं?/ 'रेड लाईट एरिया में' शब्द पर ग़ौर फरमाएं । वहां ये सामान वितरित करना समझ में आता है। परन्तु किन्नरों काे ये सामान वितरित करना ताे अप्रकृतिक सबंधों को बढ़ावा देना यानि उसका समर्थन करना ही समझ में आ रहा है। सादर
बदबूदार उजाला
आख़िरी शब्द लिखते ही उसने गहरी सांस ली। फिर काग़ज़ के टुकड़ों को हाथ में लिया और मुस्कुराया। वह काफी रोमांचित था और इस बात से ख़ुश भी कि उसकी कविताएँ अब छपने के लिए तैयार थीं। उसने निश्चय किया कि वह कल सुबह ही शहर जा कर प्रकाशक से मिलेगा। पर इसके पहले वह अपनी सारी कविताएँ एक बार पढ़ लेना चाहता था।
जैसे-जैसे उसने कविताओं को पढ़ना शुरू किया वैसे-वैसे उसके सामने कुछ चित्र घूमने लगे; पहाड़ों, झरनों और झीलों के ख़ुशनुमा चित्र। उसकी कविताओं में एक ओर खिलखिलाती हँसी थी तो दूसरी ओर जीवन से भरी ढेर सारी आशाएँ। पहली कविता उगते हुए सूरज की थी तो दूसरी फूलों की घाटियों से आती हुई ख़ुशबू की। थोड़ा आगे बढ़ने पर शान्ति का सन्देश फैलाते कबूतर थे तो थोड़ा और आगे बढ़ने पर ख़ूबसूरत चाँद को निहारता एक छोटा सा लड़का। एक कविता आदमी और उसके वफ़ादार कुत्ते की भी थी। कुत्ते के सर पर हाथ फेरते उस आदमी के पैर को वह कुत्ता प्यार से चाट रहा था। एक और कविता थी जिसमें एक दूजे का हाथ पकड़े दो साये समुद्र किनारे प्रेम का गीत गाते टहल रहे थे। आख़िरी कविता में अलाव जल रहा था जिसके पास खड़े कुछ लोग दर्शन सम्बन्धी बातें कर रहे थे। वह बहुत ख़ुश था।
तभी हवा का एक तेज झोंका खिड़की से आ कर उससे टकराया। उस झोपड़ी में टंगी लालटेन जो कि वहाँ पर रौशनी का एकमात्र जरिया थी ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगी। अचानक उसे एक अजीब सी गंध वहाँ पर फैलती हुई प्रतीत हुई। तभी हवा का एक और झोंका आया जिससे उसके हाथ में रखे पन्ने तेजी से पलटने लगे। वह सिहर गया। उसने देखा कि लालटेन की रौशनी कविताओं के बीच से आ जा रही थी। न चाहते हुए भी उसकी आँखें फिर से उन कविताओं से गुज़रने लगीं। उसकी कविताओं में फैले हुए पहाड़ अब टूट रहे थे, झरने थम रहे थे, झीलें सूख रही थीं, खिलखिलाती हँसी रूदन बन रही थी तो आशाएँ निराशाओं का संगीत। सूरज डूबने लगा। इसी समय कुछ लोग घोड़ी पर बैठकर घाटी में आये और माली की हत्या कर फूलों को लूट ले गए। थोड़ी ही देर में कबूतर गिद्ध बनकर घाटी के ऊपर मँडराने लगे। अपने घुटनों के बल बैठा वह छोटा लड़का जिस ख़ूबसूरत चाँद को निहार रहा था वह जली हुई रोटी में बदल चुका था। मगर वह गंध अभी भी आ रही थी। उसने देखा कि वह कुत्ता जो अब तक उस आदमी का पैर चाट रहा था ने उसे ज़ोर से काट लिया। उस आदमी के मुँह से चीख़ निकल पड़ी। उसने कुत्ते की तरफ देखा। वह कुत्ता नहीं, उसका दोस्त था। सुमद्र किनारे टहल रहे उस जोड़े में से एक ने, जो अब तक एक दूसरे का हाथ पकड़े प्रेम का गीत गा रहे थे, खंजर निकाला और दूसरे की पीठ पर घोंप दिया। वह वहीं गिर गया। खंजर वाले उस साये के हाथ में चूड़ियाँ खनखना रही थीं जिनकी आवाज़ इतनी तेज थी कि उनमें सुमद्र से उठती लहरों का शोर भी दब गया। वो अलाव जो अब तक धीरे-धीरे जल रहा था अचानक तेज हो कर चिता में तब्दील हो गया। उसके आसपास खड़े बातें कर रहे लोग शान्त हो कर मुर्दों में बदल गए। उन मुर्दों के बीच एक कवि बैठा था जो अपनी ही जलती हुई चिता पर कविता लिख रहा था।
वह गंध उन कविताओं से आ रही थी। उसने उन्हें अपने हाथों से झटक कर दूर फेंक दिया। मगर उस गंध में कोई कमी नहीं हुई। उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसे लगा कि वह मर जाएगा। वह इधर उधर कमरे में घूमने लगा। अचानक उसने लालटेन को उठाया और कविताओं पर दे मारा। कविताएँ जलने लगीं। धीरे-धीरे एक उजाला पूरे कमरे में फैलने लगा। उस उजाले में उन कविताओं में लिखे शब्दों के साथ वह गंध भी लिपटी थी। अब वह गंध पहले से और ज़्यादा थी। उसका सर चकराने लगा। गंध में लिपटा वह उजाला बढ़ता ही जा रहा था। धीरे-धीरे वह उजाला इतना बढ़ गया कि अँधेरे में तब्दील हो गया। उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वह गंध अब उसके नथुनों से होते हुए उसके फेफड़ों तक जा पहुँची थी। वह हाँफने लगा और हाँफते-हाँफते ही उस झोपड़ी से बाहर निकला। बाहर अमावस सी काली रात थी। वह जंगल की तरफ भागा। धूँ-धूँ कर जलती हुई उस झोपड़ी से प्रेम, विश्वास और करुणा जैसे चमकते हुए कुछ शब्द निकले और उसका पीछा करने लगे। उसने मुड़कर देखा और ज़ोर से चिल्लाया, "अब मैं तुम्हारी पकड़ में नहीं आऊँगा।" और फिर देखते ही देखते उस जंगल में ग़ुम हो गया।
(मौलिक व अप्राकाशित)
बहुत उम्दा लघुकथा है भाई महेंद्र कुमार जी, इस विषयानुरूप लघुकथा हेतु बधाई स्वीकार करेंI लेकिन अनावश्यक विस्तार की वजह से थोड़ी बोझिल हो गई हैI आखरी तीनो पैरों में सम्पादन की ज़बरदस्त गुंजाइश हैI क्योंकि पूरी रचना में केवल एक संवाद है और बाकी सब विवरण है, इसलिए रचना में प्रवाह नहीं आ पायाI लेकिन थोड़ी सी मेहनत करने से बेहतरीन रचना उभर कर सामने आएगीI
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |