For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हकीकत हूँ परेशां हूँ (मुसल्सल ग़ज़ल)

हकीकत हूँ परेशां हूँ कभी हारा कहाँ हूँ मैं।
हवा हूँ तरबतर खुश्बू चमन तेरे रवाँ हूँ मैं। 1
--------
खिले जो भी गुले गुलजार हर इक ओर देखो तो,
हसीं मौसम चटकता रंग सब का बागवां हूँ मैं। 2
----
अजानो में भजन में एक ही अक्स है मेरा,
दुआ हूँ मैं दया हूँ मैं सभी से आशना हूँ मैं। 3
----
गमों की बात ही क्या हाथ जो दो हाथ में मेरे,
चले आओ सितारों में चमकता कहकशां हूँ मैं। 4
----
अदालत से बचोगे तुम जहां भर के निगाहों से,
छुपाकर जो किये हो जुर्म उसका राजदां हूँ मैं। 5
-----
पसारो पाँख को अपने उड़ो जितना भी दिल चाहे,
नहीं है ओर कोई छोर जिसका आसमाँ हूँ मैं। 6
-----
करो क्यों भेद मुझसे धर्म के नाम पर तुम सब,
कुरानों और ग्रंथो में बराबर ही बयां हूँ मैं। 7
-----
शिवाला या इबादतगाह में मुझको न बाँधो तुम,
कहो मुझको खुदा ईश्वर सभी का रहनुमां हूँ मैं। 8
-----------
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना।

Views: 696

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on January 21, 2017 at 2:29pm
जनाब मोहम्मद आरिफ साहब, आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी आपका शुक्रगुजार हूं।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on January 21, 2017 at 2:27pm
श्रधेय समर कबीर जी,मिथलेश वामनकर जी, आदरणीय गिरिराज भाई साहब,रचना पर आप सबके स्नेहिल प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ इस स्नेह के लिए नमन सह अशेष आभार है।
Comment by narendrasinh chauhan on January 17, 2017 at 2:20pm

सुन्दर  रचना 

Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 9:04pm
जनाब सुनील प्रसाद जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
जनाब गिरिराज भाई के मश्विरे माक़ूल हैं,कुछ बातें में साझा करता हूँ ।
मतले का ऊला मिसरा यूँ कीजिये;-
'हक़ीक़त है परेशां हूँ,अभी हारा कहाँ हूँ मैं'
तीसरे शैर में क़ाफ़िया दोष तो है ही,ऊला मिसरा भी लय में नहीं है,इस शैर को यूँ किया जा सकता है:-
'अजानों में भजन में एक ही तो अक्स है मेरा
दुआ भी हूँ,दया भी हूँ,सभी पे मह्ररबां हूँ मैं '
चौथे शैर में 'कहकशाँ'स्त्रीलिंग है, इसलिये "चमकती कहकशाँ"करना उचित होगा ।
पांचवें शैर में 'निगाहों'भी स्त्रीलिंग है, इसलिये "की निगाहों"करना उचित होगा ।
सातवें शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं है,और सानी मिसरे में'क़ुरानो'शब्द बहुवचन है, और "कुरआन"का बहुवचन नहीं होता वो एक ही है, इस शैर की इस्लाह में वक़्त लग जायेगा ।
आख़री शैर में भी क़ाफ़िया दोष है,सही शब्द है "रहनुमा"
बाक़ी शुभ शुभ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 16, 2017 at 8:37pm

आदरणीय सुनील जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. ग़ज़ल के अशआर पर तार्किकता एवं बह्र के हवाले से कुछ बातें साझा कर रहा हूँ-

हकीकत है परेशां हूँ मगर हारा कहाँ हूँ मैं।.................. कथ्य की तार्किकता पर विचार कीजियेगा
हवा हूँ तरबतर खुश्बू चमन तेरे रवाँ हूँ मैं। 

अजानो में, भजन में एक ही तो अक्स है मेरा,...................... तो, बह्र निभाने के लिए 
दुआ हूँ मैं दया हूँ मैं सभी से आशना हूँ मैं। 3
----
गमों की बात ही क्या हाथ जो दो हाथ में मेरे,... यहाँ 'दो हाथ' का निहितार्थ 'दोनों हाथ' या' हाथ देने' के अर्थों का भ्रम पैदा कर रहा है. 
चले आओ सितारों में चमकता कहकशां हूँ मैं। 4
----
अदालत से बचोगे तुम जहां भर के निगाहों से,
छुपाकर जो किये हो जुर्म उसका राजदां हूँ मैं। 5............... छुपाकर जो किये हैं जुर्म ... कहना ज्यादा सही नहीं होगा?
-----
पसारो पाँख को अपने उड़ो जितना भी दिल चाहे,............ पसारो पंख अपने फिर उड़ो जितना भी दिल चाहे
नहीं है ओर कोई छोर जिसका आसमाँ हूँ मैं। 6
-----
करो क्यों भेद मुझसे धर्म के नाम पर तुम सब,.......... करो मत भेद मुझमें यूं धरम के नाम पर तुम सब ---- मिसरा बेबह्र हुआ इसलिए
कुरानों और ग्रंथो में बराबर ही बयां हूँ मैं। 7
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2017 at 8:05pm

आदरनीय सुनील भाई , अच्छी गज़ल कही है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आ. दो एक बात खना चाहता हूँ --
1 - हकीकत हूँ परेशां हूँ कभी हारा कहाँ हूँ मैं   -- इस मिसरे मे  ' कभी ' को  अभी कर के देखियेगा
2-  आशना , काफिया सही  नही है --  बयाँ कहाँ .... आदि के साथ
3-  करो क्यों भेद मुझसे धर्म के नाम पर तुम सब,  -- इस मिसरे की लय जाँच लीजियेगा - बे बहर लग रहा है

Comment by Mohammed Arif on January 16, 2017 at 4:47pm
आदरणीय सुनील प्रसादजी, आदाब ! साम्प्रदायिक सद्भभावना को बढ़ावा देती ग़ज़ल के लिए बधाई ।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on January 16, 2017 at 4:05pm
जी ,आदरणीय ब्रजेश ब्रज जी आपने सही कहा मूल रचना में इसे सुधार लिया जाएगा। एक गुरु काम है।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 15, 2017 at 5:24pm
वाह बहुतखूब आदरणीय...तीसरे शे'र के उला मिसरे को देखिये जरा..मापनी से बाहर है क्या??

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
21 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service