आदरणीय साथिओ,
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आज के भौतिक जीवन में विकास शीलता से शारीरिक रूप से इंसान तो कमजोर हुआ ही छोटे छोटे रोजगार जैसे धोभी महरी आदि के काम भी खत्म हो गए जिनसे आस पास की खबरें मिलती रही थी ...बहुत खूब कमरे में एकाकी जीवन झेलते बिस्तर से लगे घर के मालिक का दर्द खूब उभर कर आया है लघु कथा में आद० माला जी बहुत-बहुत बधाई .
समय के साथ परिवर्तन अवस्यम्भावी है, बढ़िया रचना विषय पर| बधाई आपको
आ० माला जी . बढ़िया कथा बुनी आपने जो कुछ लोच थी वह आ० योगराज जी ने स्पष्ट कर दिया .सादर,
मुह्तरमा माला साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा हुई है जिस
के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ---
’वो तीन ‘
अमर अकबर एंथनी , पार्क में घूमने वालों ने ये ही नाम दे रखा था उन तीनों को I एक लंबा ,एक नाटा और एक मोटा ,उम्र पचहत्तर के आस पासI सैर के बहाने रोज दिन चढ़े तक पार्क की बेंच पर जमे रहते ये तीनों I बात बेबात कभी जोर जोर से हँसते हुए एक दूसरे को ताली देते तो कभी अपने में ही खोये चुपचाप सामने कुछ ताकते रहते I घर लौटने की तीनों को ही कोई जल्दी नहीं रहती थी I
पर आज का दिन कुछ अलग था I
“चलें उठें , कल मिलते हैं “I छड़ी संभाले खड़े हो गए एंथनी I
“ ओ हो ,आज इस ओल्ड मैंन को क्या काम आन पड़ा भई ? बैठो यार , आठ ही तो बजे हैं अभी “I बैठक ख़त्म होने के ख्याल से अकबर उदास हो गए थे I
“आज नवम्बर का दूसरा हफ्ता है I कुछ याद आया” ? बेंच पर फिर से जमते हुए एंथनी ने अकबर के कंधे पर हाथ रख दिया I
“नवम्बर का दूसरा हफ्ता i हाँ हाँ याद आ गया ,याद आ गया “I उत्साह में जोर जोर से बोलते अकबर अब खाँसने लगे थे I
“इस ओल्ड मैन को भी याद आया कि नहीं “? अमर के कंधे पर हाथ रखा एंथनी ने I
“ हाँ हाँ , आ गया, अच्छी तरह याद आ गया भई I आज तो बहू गर्म नाश्ता लिए इंतज़ार कर रही होगी इस लम्बू का” I झुर्रियों के पीछे से युवाओं वाली शरारत चमक रही थी अमर के चेहरे पर I
“और आज्ञाकारी बेटे ने आधे दिन की छुट्टी भी ले रखी होगी ऑफिस से “I अकबर ने हवा में नाटकीय अंदाज़ में हाथ घुमाये I
“बेटा लम्बू को बैंक ले जाएगा , फिर लम्बू कागज़ पर साइन करेगा ,और ..और ये साबित हो जाएगा कि हमारा ये लम्बू ओल्ड मैन अभी ज़िंदा है I भई बधाई हो बधाई “I एंथनी की पीठ पर धौल जमा दिया अमर ने I
“और फिर इस ओल्ड मैन की पेंशन जारी रहेगीsss”I अपनी बात को लम्बे सुर में खींचते हुए अकबर बोलेI
“ गुरु हो दोनों “I छड़ी संभाले खड़े होते हुए एंथनी ने अकबर को ताली दी और दोनों जोर जोर से हँसने लगे I
“ अब ये ओल्ड मैन किस सोच में डूब गया “? अकबर ने अमर का गंभीर हो चला चेहरा भाँप लिया I
“यार सोच रहा हूँ “ शून्य में ताकते हुए ही बोल रहे थे अमर “कोई पेंशन वाली सरकारी नौकरी करी होती तो कम से कम एक दिन तो घर में हमारा भी इंतज़ार होता और हमें भी लौटने की जल्दी होती”I
(मौलिक व अप्रकाशित )
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