आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी।
पति पर पत्नी के विश्वास का भरोसे का ढहता किला उसके अलावा पति के साथ हुए अमानवीय कृत्य अर्थात नपुंसक बना देने के कारण आत्मग्लानि में तिल-तिल
ढहता हुआ पुरुषता का किला एक भिन्न कथानक पर लिखी लघु कथा के लिए बधाई आद० तेजवीर सिंह जी
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी।
आ० तेजवीर सिंह जी, प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का सद्प्रयास हुआ है जिस हेतु आपको हार्दिक शुभकामनाएँI हम लोग इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि लघुकथा कहते हुए “क्या”, “कैसे” और क्यों” का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है, दुर्भाग्य से “कैसे” वाला बिंदु आपकी लघुकथा में कमज़ोर रह गया हैI आपने कहा है कि यह लघुकथा एक सत्य घटना पर आधारित है, मुझे इस बात पर यकीन हैI लेकिन, इस रचना में बात कहने का ढंग मुझे सही नहीं लगाI समाज में हर तरह की बुराई और नंगापन है, लेकिन ये नकारात्मक बातें समाचार तक तो ठीक हैं लेकिन एक साहित्यिक कृति (विशेषकर लघुकथा) में ऐसी बातों को एक अलग तरीके से कहना होता हैI साले को साला कहना गलत नहीं है लेकिन उसे बच्चों के मामा जी कहना या पत्नी के भय्या कहना एक सभ्य तरीका हैI
बतौर सजा जो उस व्यक्ति के साथ जो हुआ उसको यदि इशारे में कहा जाता तो रचना प्रभावशाली बन जातीI दूसरी और सबसे अहम बात, स्वतंत्र तौर पर यह लघुकथा ठीक है किन्तु इसमें किले के ढहने या उसके दर्द वाली बात कहाँ है और क्या है? क्योंकि यहाँ किला एक मेटाफोर की तरह लिया गया है, जिसे समझने में शायद आपसे चूक हो गईI
आदरणीय योगराज भाई जी, लघुकथा पर आपके मार्ग दर्शन हेतु हार्दिक आभार। मैंने लघुकथा में आंशिक संशोधन किया है।यदि आपके दृष्टिकोण से यह सही लगे तो स्वीकृति प्रदान करें।
नासूर - लघुकथा –
दीपक कई साल से विदेश में एक इलेक्ट्रीशियन के तौर पर कार्य कर रहा था। वैसे तो वह हर साल दिवाली पर गाँव आता ही था। मगर इस बार वह हमेशा के लिये गाँव आगया था। इस बात से उसकी घरवाली लाजो बहुत खुश थी क्योंकि वह घर और बच्चों की जिम्मेदारी अकेले संभालते संभालते थक गयी थी। अब वह कुछ पल पति की बांहों में सुकून से बिताने के सपने देख रही थी।
लेकिन दीपक का व्यवहार उसके लिये एक पहेली बन गया था। इतने लंबे समय बाद लौटने के बावज़ूद दीपक ने उसे छूना तो दूर नज़र भर कर देखा भी नहीं। यह स्थिति लाजो के लिये दिन पर दिन असहनीय होती जा रही थी। वह दीपक की बेरुखी की वज़ह जानने को बेताब होती जा रही थी। आखिरकार लाजो के सब्र का बांध टूट गया,
"क्योंजी, मुझसे कोई भूल हो गयी है क्या। आप पहले तो मुझसे बहुत प्यार करते थे। अब यह दूरी क्यों"?
"अरे नहीं लाजो, ऐसा मत बोल, मेरी कुछ मजबूरी है"।
"तो क्या आपके जीवन में कोई और है"?
"तू कैसी बात कर रही है। मेरी तो सब कुछ तू ही है"।
"पर फिर भी कुछ ऐसा है जो आप मुझसे छिपा रहे हो। इस बार आप बिलकुल बदल गये हो"।
"हाँ लाजो, तू ठीक समझी। मैं अब तेरे क़ाबिल नहीं रहा"।
"आप पहेलियां मत बुझाइये, मुझे सब कुछ सच सच बताइये"।
"नहीं लाजो, मुझसे यह नहीं होगा। मुझे मेरे दर्द के साथ अकेले ही जीने दो"।
"आप सिर्फ़ अपने लिये सोचते हैं। मेरे दुख दर्द की परवाह नहीं"।
"लाजो,मेरी बात सुन कर तेरा दुख और बढ़ जायेगा। तू सुन नहीं सकेगी"।
"मैं सब सुन लूंगी और सह भी लूंगी। आप बताइये तो "।
"लाजो, मुझसे एक भयंकर भूल हो गयी थी । मेरे एक औरत से संबंध हो गये थे। उसका पता चलने पर वहाँ के लोगों ने सज़ा के तौर पर मुझे सदैव के लिये नपुंसक बना दिया"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
किसी प्रकार के संशोधन हेतु संकलन आने के पश्चात ही निवेदन करें आ० तेजवीर सिंह जीI
हार्दिक आभार आदरणीय नीता जी।लघुकथा को आंशिक संशोधन के साथ पुनः प्रेषित किया है।सादर।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब,आपने लघुकथा को अपना अमूल्य समय दिया।लघुकथा पर आपके विचारों का स्वागत है।ऐसी एक घटना मेरे गाँव के दो कारपेंटर लड़कों के साथ १९६४ में हुई थी।एक का हाथ काट दिया था चोरी के जुर्म में और दूसरे को नपुंसक कर दिया था, बलात्कार के जुर्म में।आज के समय में नपुंसक करने वाला नियम केवल चीन में है।अरब देशों में मृत्यु दंड दिया जाता है।तीन तरह से, १-आम पब्लिक के सामने गला रेत कर २- भीड़ द्वारा पत्थर मार कर ३ - सरे आम गोली मार कर।मगर यह क़ानून उस देश के वासियों के लिये हैं।बाहरी लोगों की सज़ा उनके क़ानून से अलग है।जिसकी कोई सीमा नहीं और ना कोई दस्तावेज।मैंने लघुकथा को आंशिक संशोधन के साथ पुनः प्रेषित किया है।कृपया अवश्य अवलोकन करें।सादर।
आ० तेजवीर जी ----इसमें ढहते किले का दर्द नहीं दिख रहा . अरब देशों में अपराध की सजा ऐसी हो सकती है पर अपराध अलग बात है .
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