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# आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,
किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं … शब्द कम पड़ जाएंगे …
एक हुनरमंद अदीब की नज़रे-इनायत हो जाना रचना का सबसे बड़ा इनआम होता है ।
इसी कारण मैं शस्वरं पर लगी रचनाएं देख कर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए गुणीजनों से निवेदन करता रहता हूं ।
यहां आपने अपनी कृपादृष्टि ही नहीं की , बल्कि इतने विस्तार से मेरी रचना पर बहुमूल्य प्रतिक्रिया भी व्यक्त की …
अर्थात् इनआम भी आशीर्वाद भी :) शुक्रिया !
ऐब-ए-तनाफुर पर बात करके आपने दिल जीत लिया ।
सच कहूं तो आप ग़ज़ल पर बात करने के लिए अधिकृत हस्ताक्षर हैं ।
बहुत सूक्ष्म जानकारी की बात है … भविष्य में और सावधानी रखने का प्रयास रहेगा ।
…और इस ग़ज़ल के लिए 'डूब मरो' जैसा ही अर्थ और प्रभाव रखने वाला जुम्ला तसल्ली से फिर से लिखते वक़्त ध्यान में रखूंगा ।
पुनःश्च आभार !
# आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,
किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं … शब्द कम पड़ जाएंगे …एक हुनरमंद अदीब की नज़रे-इनायत हो जाना रचना का सबसे बड़ा इनआम होता है ।
इसी कारण मैं शस्वरं पर लगी रचनाएं देख कर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए गुणीजनों से निवेदन करता रहता हूं ।
यहां आपने अपनी कृपादृष्टि ही नहीं की , बल्कि इतने विस्तार से मेरी रचना पर बहुमूल्य प्रतिक्रिया भी व्यक्त की …
अर्थात् इनआम भी आशीर्वाद भी :) शुक्रिया !
ऐब-ए-तनाफुर पर बात करके आपने दिल जीत लिया ।
सच कहूं तो आप ग़ज़ल पर बात करने के लिए अधिकृत हस्ताक्षर हैं ।
बहुत सूक्ष्म जानकारी की बात है … भविष्य में और सावधानी रखने का प्रयास रहेगा ।
…और इस ग़ज़ल के लिए 'डूब मरो' जैसा ही अर्थ और प्रभाव रखने वाला जुम्ला तसल्ली से फिर से लिखते वक़्त ध्यान में रखूंगा ।
पुनःश्च आभार !
ख़ुदा जाने कॅ बंदों ने किया क्या ; क्या कराया है
तिजारत की वफ़ा की , मज़हबी सौदा कराया है - सच, बन्दों की करतूतों को समझ पाना अब बन्दों के बस की बात नहीं रही.
बड़ी साज़िश थी ; पर्दा डालिए मत सच पे ये कह कर-
’ज़रा-सी जिद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है’ - वाह... वाह... अपने तस्वीर के दूसरे रुख को खूबसूरती से सामने रखा है.
ज़रा तारीख़ के पन्ने पलट कर पूछिए दिल से
कॅ किसने नामे-मज़हब पर यहां दंगा कराया है - गौर करना ही होगा.
वो जब हिस्से का अपने ले चुका , फिर पैंतरा बदला
मेरे हिस्से से उसने फिर नया टुकड़ा कराया है - अरे! यह तो पाकिस्तान ही है जो लगातार कोशिश करता जाता है.
वफ़ा इंसानियत ग़ैरत भला उस ख़ूं में क्या होगी
बहन-बेटी से जिस बेशर्म ने मुजरा कराया है - दिल को छू लेनेवाला शे'र.
अरे ओ दुश्मनों इंसानियत के ! डूब’ मर जाओ
मिला जिससे जनम उस मां से भी धंधा कराया है - औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया... इतने बरसों में कुछ भी न बदला.
जिसे सच नागवारा हो , कोई कर के भी क्या कर ले
हज़ारों बार आगे उसके आईना कराया है - हमारा पड़ोसी हर आईने को झूठा कह देगा, बताइए क्या करें... सिवाय इसके कि फिर-फिर आइना दिखाते रहें.
ज़ुबां राजेन्द्र की लगने को सबको सख़्त लगती है
वही जाने कॅ ठंडा किस तरह लावा कराया है - राजेन्द्र भाई लावा खौलता रहे... जो लाइलाज हो उसको ख़त्म तो कर देगा.
सामयिक विडम्बनाओं को उद्घाटित करती हुई बहुत अच्छी ग़ज़ल.
बड़ी साज़िश थी ; पर्दा डालिए मत सच पे ये कह कर-
’ज़रा-सी जिद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है’
बहुत खूब। अच्छे कटाक्ष हैं अश'आर में।
/ख़ुदा जाने कॅ बंदों ने किया क्या ; क्या कराया है
तिजारत की वफ़ा की , मज़हबी सौदा कराया है/ वाह वाह राजेंद्र साहिब, मतला से ही जाता दिया की ग़ज़ल कितनी खुबसूरत होगी,
/बड़ी साज़िश थी ; पर्दा डालिए मत सच पे ये कह कर-
’ज़रा-सी जिद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है’/ बहुत खूब उम्द्दा ख्याल है, बात बड़ी है जरा सी जिद कह कर पल्ला नहीं झाड़िए, बहुत खूब | बड़ी चतुराई से गिरह बाँधी है |
/ज़रा तारीख़ के पन्ने पलट कर पूछिए दिल से
कॅ किसने नामे-मज़हब पर यहां दंगा कराया है/ ग़ज़ल की जान , खुबसूरत शे'र
/वो जब हिस्से का अपने ले चुका , फिर पैंतरा बदला
मेरे हिस्से से उसने फिर नया टुकड़ा कराया है/ इंसानी फितरत को बयान करता शे'र
वफ़ा इंसानियत ग़ैरत भला उस ख़ूं में क्या होगी
बहन-बेटी से जिस बेशर्म ने मुजरा कराया है......आय हाय, बेहद उम्द्दा, दिल जितने वाला शे'र ,
/अरे ओ दुश्मनों इंसानियत के ! डूब’ मर जाओ
मिला जिससे जनम उस मां से भी धंधा कराया है/ क्या बात है क्या बात है, कमीनो के मुह पर लात मार दिया है आपने |
/जिसे सच नागवारा हो , कोई कर के भी क्या कर ले
हज़ारों बार आगे उसके आईना कराया है/ बिलकुल सही कहा जनाब, सोये को जगाया जाता है जगे को नहीं , बहुत सही ,
/ज़ुबां राजेन्द्र की लगने को सबको सख़्त लगती है
वही जाने कॅ ठंडा किस तरह लावा कराया है, / बेहतरीन मकता
कुल मिलाकर एक शानदार प्रस्तुति पर दाद कुबूल कीजिये जनाब |
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