आदरणीय साथिओ,
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आपकी पहली कथा धार्मिक आस्थाओं के नाम पर जो दुकाने चल रही हैं उनपर प्रहार है जो बहुत सशक्त रूप से उभर कर आया है ..दूसरी कथा में संस्कार और आदतों की असली जड़ ,पारिवारिक परिवेश पर निशाना है दोनों ही अपने उद्देश्य में सार्थक हैं ,,हार्दिक बधाई प्रिय सीमा जी
आदरणीय सीमासिंहजी बहुत सुंदर व सटीक लघुकथा लिखी है आप ने . बधाई आप दोनों उम्दा लघुका के लिए .
दोनों कथाएं शानदार विशेषकर धंधले साये । हार्दिक शुभकामनाएं ।
दोनों ही रचनाओं ने खूब झटके दे कर विस्मित कर दिया सीमा जी। दोनों का अंत चरम पर पहुंच कर मुग्ध कर देने वाला। बधाई। // आश्रम वाले महंत जी शैली बेबी को देवी बना देंगे।”// कमाल का व्यंग्य है। इसी तरह // सुसरा लीचड़ कहीं का// बताता है किसी हरियाणवी के सम्पर्क में रही हैं आप शायद। आपकी दोनों रचनाओं ने गुड फील कराया , अच्छा लगा।
आदरणीया सीमाजी
देवी ..... स्वार्थ के आगे नैतिकता / मानवता प्रायः टिक नहीं पाती, अच्छी लघु कथा । ह्रदय से बधाई इस प्रस्तुति पर ।
दूसरी भी अच्छी लगी।
सीमा जी आपकी प्रस्तुति कौशल से दोनों ही कहानियाँ प्रभावित करती हैं
दोनों कथाएँ बहुत सटीक हैं ,बधाई आपको
दोनों लघु कथाएँ बहुत सुंदर रची है सधी हुई है | पहली लघु कथा में मार्मिक भाव बहुत आकर्षित कर रहे है और अनुकरणीय भी है | बहुत बहुत बधाई आ. सीमा सिंह जी
हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी।दोनों ही लघुकथायें बहुत सराहनीय और संदेश परक लिखी गयी हैं।मुझे दूसरी लघुकथा अधिक प्रभावी लगी।
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