आदरणीय साथिओ,
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पुत्र-मोह की ज्वाला
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“रामदीन जी, क्या हो रहा है |”
कुछ नहीं कृष्ण दास जी, लड़के को कंपनी दोगुना पॅकेज का आँफर देकर अमेरिका भेज रही है | पर मेरा दिल नहीं मानता | लड़के शैलेन्द्र का अनुरोध है कि आप और मम्मी भी साथ चलों | सेवा निवृति के बाद यहाँ कोई काम तो है नहीं |
इस पर रामदीन ने कहाँ बुरा मत मानना और न ही मै आपको डरा रहा हूँ पर हमारे पडौस की सत्य घटना बता रहा हूँ | “मेरे पडौसी का अमेरिका में मन नहीं लगा और वापस यहाँ आ गए | उनकी पत्नी पुत्र मोह में बिमार हो गयी और कुछ ही दिन में चल बसी | उनका आपकी तरह एक मात्र लड़का कंधा देने भी नहीं आ पाया |” वे आगे बोले- "जिस इकलौते लड़के को पढ़ा-लिखा कर लायक बनाया वह अगर माँ-बाप की सेवा करना तो दूर, अंत समय भी हाथ लगाने तक को भी उपलब्ध नहीं था |"
इतने में ही लड़का शैलेन्द्र आ गया और कहने लगा – “तैयारी करों पापा ! कम्पनी ने पांच वर्ष का अमेरिका में जॉब करने का बांड भरवा लिया है | पांच वर्ष नौकरी कर अच्छा पैसा इकठ्ठा कर वापस लौट आयेंगे |”
रामदीन जी कृष्णदास की बातों पर मनन करते हुए दुखी मन से अपने पुत्र शैलेन्द्र को कहाँ – “बेटा जब तू पांच वर्ष का बांड भर ही आया तो जा, हम पति-पत्नी का तो यहाँ मेरी पेंशन से ही गुजारा हो जाएगा | मै तुझे एयरपोर्ट छोड़ आता हूँ |” उनके रवाना होते ही पीछे से बेटे शैलेन्द्र की माँ बेहोश हो गई | एयरपोर्ट से लौटकर रामदीन जी ने डाक्टर को बुलाया | चिकित्सक ने जांच कर कहाँ कि इन्हें दवा से ज्यादा तनाव-मुक्त रखने की अधिक आवश्यकता है | यह सुन रामदीन जी स्वयम ही चिंतित हो इस सोच में डूब गए कि मै पत्नी को तनावमुक्त कैसे रखूँगा जो पुत्र मोह की ज्वाला में जल रही है |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
(२)
बैसाखी बनाम होंसला
"डॉ. पूजा जी से बात करनी है" !
"हां मै डॉ. पूजा बोल रही हूँ"
"डॉ. मुझे पापा जी को दिखाना है जो पाँव से चल नहीं सकते | आपके यहाँ व्हील चेयर का इंतजाम हो जायेगा ?
"हाँ, सब हो जाएगा आप ले आये"
गाडी से अपने ससुर श्री कृष्णावतार जी को उनकी बहूँ ऋतू और उनका पुत्र बसंत लेकर गये | जैसे तैसे अपने बहूँ और बेटे की मदद से श्री कृष्णावतार जी
डॉ. के कक्ष तक गये |
कृष्णावतार जी ने डॉ को बताया " डॉ साहिबा जब मै कोई 3 वर्ष का था तभी सीढियों में पाँव फिसलने से दाएं पैर में घुटने जांघ में मोच आ गई और पहलवान के इलाज के दौरान जांघ की हड्डी में मवाद के कारण हड्डी गल गयी जिसे बड़े अस्पताल के डॉ. ने काट दी तथा तीन चार साल इलाज चला पर कुछ रहत नहीं मिली | अब मेरी उम्र 70 वर्ष है | गत एक सप्ताह से चलना बिलकुल बंद हो गया |"
डॉ ने जांच कर कहा "उस समय इतना विकास नहीं हुआ था | लेकिन उसके बाद आपने ने आज से बीस प्साल पहले केलिपर बनाया होता तो ठीक रहता | आप की जांघ में हड्डी में गेप है और ये पाँव भी आठ इंच छोटा है तो अब तक सत्तर वर्ष कैसे चले | और आप काम क्या करते थे |"
"मै झुक कर एवं एडी ऊंची कर पाँव की अँगुलियों के सहारे चल रहा था | काफी मूवमेंट रहा है | कलेक्ट्रेट में लेखाकार पड़ पर था तथा समाजसेवी रहा हूँ |
"डॉ साहिबा कहने लगी "प्रधान मंत्री मोदी जी सरकार ने दिव्यांग नाम सही ही दिया है | आपको देखकर लगता है आप नहीं विकलांग तो हम है | आप इस ६५-६६ वर्षों में इतने चल चुके ये आपके अंदर होंसले को बयाँ रह है |"
वे आगे बोली "देखो इस उम्र तक शरीर में केल्शियम और विटामिन डी की कमी हो जाने से हड्डिया कमजोर होकर सिकुड़ने लगती है | ऐसे में केल्शियम के और विटामिन डी के इंजेक्शन लिखती हूँ जो लगवा ले | अब आपकी जांघ में लचक के कारण इस उम्र में अधिक कुछ नहीं हो सकता है | फिर भी ये कार्ड लीजिये और यहाँ नाप देकर लगभग 5-6 इंच ऊँचा जूता बनवा लों"
बीच में बहूँ बोली "डॉ. फिर ये चल तो पायेंगे न ?"
डॉ. "जब ये बिना सहारे इतनी उम्र तक चलते रहे है तो उम्मीद करनी चाहिए कि कुछ हड्डियों में जान आने से और ऊंचे जूते के सहारे चल पायेंगे |"
"ऐसे लोगो से तो हमारो होंसला और बढ़ता है | इन्हें बैसाखी की दरकार नहीं है |”
(मौलिक व अप्रकाशित)
आदाब जनाब मोहम्मद आरिफ साहब | दोनों लघुकथाएं आपको पसंद आयी यह जानकार संतोष हुआ | दरअसल दूसरी लघु-कथा तो मेरे जीवन की ही इन्ही दिनों की सत्य घटना पर आधारित लघुकथा है | प्रथम उत्सावर्धक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
अच्छी लघुकथाएँ है आ० लड़ीवाला जी, सहभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकारेंI
प्रथम तो ओबीओ में आपकी पहल पर प्राम्भ की गई लघु-कथा के रजत जयंती के लिए हार्दिक शुभ कामनाएँ जिसके कारण मै भी लघु कथा लिखने के लिए प्रेरित हुआ | रजत जयंती अंक में प्रस्तुत लघुकथा का मेरा सफल हुआ इसके पीछे सतत प्रेरणा ही है |
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय योगराज भाईजी
आदाब जनाब समर कबीर साहब | गत 4-5 माह से अंतिम दिन के दोपहर बाद रचनाए प्रस्तुत करने कंप्यूटर से मेरी दूरी थी | दूसरी लघुकथा जो मेरी ही शारीरिक अवस्था को बयाँ करती हुई रची है | आपको लघुकथा पसंद आई यह जानकार ख़ुशी हो रही है | बहुत बहुत शुक्रिया आपका | सादर
हार्दिक आभार आपका आदरनीया सीमा सिंह जी | सादर
आपको लघु-कथा अच्छी लगी यह मेरे लिए संतोष की बात है | बहुत बहुत शुक्रिया आपका श्री तस्दीक अहमद खां साहब !
आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, दोनों लघु कथायें अच्छी लगी । हृदय से बधाई
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