आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय सतविंदर जी बहुत बढ़िया रचना हुई है. बधाई आप को.
आदरणीय भाई सतविन्द्र जी । दोनों लघुकथाए बहुत बढ़ीया बनी हैं । इन दोनों कथाओं की विशेषता है इनमें होने वाला परिवेश निर्माण अथवा दृश्य चित्रण । दोनों कथाओं के पठन के दौरान पूरा एक दृश्य चलचित्र समान आंखों के सामने घूम गया। ये लघुकथा की सफलता है। पहली लघुकथा 'फैसला' का कथानक व इसका साकारात्मक अंत बहुत प्रभावित करता है। दूसरी लघुकथा 'डूबते अरमान' में 'घुड़चढ़ी' को लेकर हुए भेदभाव को बाखूबी उभारा गया है। यह लघुकथा अंत तक आते आते ढीली पड़ गई । बहरहाल शुभकामनाएं स्वीकारें ।
कथानक अच्छे हैं , किस्सागोई थोड़ी सी बोझिल है इसे रोचक बनाया जा सकता है . सादर
दोनो लघुकथाएँ उत्तम हुई हैं भाई सतविन्द्र कुमार जी, "फैसला" कथा का अंत बेहद पसंद आया, हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI
दोनों कथाओं में घटनाचक्र आँखों के सामने होता प्रतीत होता है , बहुत रोचक ढंग से लिखी गई हैं दोनों ही कथाएँ ...हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर जी
दोनों ही कथाएँ अच्छी हैं लेकिन उनका केंद्र बिंदु पंचायत ही है जबकि विषय अलग है। अच्छी लगीं ,बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर जी।दोनों ही लघुकथायें बेहतरीन हैं और समसामयिक समस्याओं को प्रदर्शित कर रही हैं।ग्रामीण परिवेश में इस तरह की घटनाओं का होना आम बात है।
दोनों लघुकथाए सुंदर हुई हैं आदरणीय सतविन्द्र भैया | पहली कथा फैसला मुझे ज्यादा पसंद आयी | हार्दिक बधाई आपको
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