आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय टी आर सकुल जी, आप ने बहुत अच्छी लघुकथा लिखी है. बधाई आप को दोनों लघुकथा हेतु.
कथााओं के अनुमोदन हेतु सादर आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी।
आपने बढ़िया ग्रंथों से बढ़िया रचनाओं / विचारों से हमारा परिचय कराया। शुक्रिया सुकुल जी।
कथाओं के अनुमोदन हेतु सादर आभार आदरणीय प्रदीप जी।
कथाओं के अनुमोदन हेतु सादर आभार आदरणीय वीरेंद्र जी।
कथाओं के अनुमोदन हेतु सादर आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब ।
आ ० , पहली कथा पर योगराज जी की बात स्वीकार्य है , सभी को होगी , दूसरी कथा में उस शिष्य की कथा का दुहराव है जिसमे गुरु अपने शिष्य से कहता है की जाओ वे वन्स्पतियां खोजकर लाओ जिनका कोइ उपयोग नहीं है और शिष्य कुछ वनस्पतिया लेकर आता है तब गुरु कहत है अभी तुम्हारी सिक्षा अधुरी है और यह क्रम की बार चलता है और अंत में शिष्य खाली हाथ लौटता है और गुरु से कहता है संसार में कोइ वनस्पति , पदार्थ या जीव ऐसा नहीं है जो अनुपयोगी हो तब गुरु कहते है -हां वत्स ,अब तेरी शिक्षा पूर्ण हुयी ; आपकी कहानी में सपाट बयानी है इसे आवश्यक पञ्च देकर रोचक बनाया जा सकता था .फिर भी प्रयास हेतु आपको बधाई , सादर .
प्रथम राजा भोज पर ऐतिहासिक कथा क्या नये कलेवर में है या नहीं, इसका निर्णय करने में मै सक्षम नहीं हूँ आदरणीय टी आर सकुल साहब | पर कथा अच्छी है |
दूसरी लघुकथा वाकई अच्छी और शिक्षा प्रद लगी | हमारे यहाँ पेड़ पौधों जड़ी बूटियों की दुर्लभ जानकारी लुप्त होती जारी है,, जिसके लेप बनाकर लोग इलाज कर लिया करते थे | या यूँ कहे कि इनके जानकार मिलना ही दुर्लभ हो गया है ,| हार्दिक बधाई आपको | ,
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