आदरणीय साथिओ,
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आ० अर्चना जी , दोनों ही कथाएँ सुन्दर है. आपको बधाई .
प्रथाएँ किसी भी धर्म की हों ,उनपर विमर्श के रास्ते हमेशा खुले होने चाहियें ये ही एक प्रगतीशील समाज की पहचान हैं पहली कथा में आपने कसावट के साथ अपने कथ्य के उद्देश्य को पाया है I हार्दिक बधाई ... लड़की शादी के बाद भी अपने परिवार की देख भाल कर सकती है , और करना भी चाहिए ,आजकल समय बदल रहा है , इस सत्य के आलोक में आपकी दूसरी कथा में कुछ सकारात्मकता जोड़ी जा सकती है कथा में ..दोनों कथाओं के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीया अर्चना जी
एक स्त्री होने के नाते आपकी भावनाओं को मैं समझ रहा हूँI किसी के मज़हब में क्या कमी है, यदि इसका कोई बुरा असर किसी दूसरे धर्म पर नहीं पड़ रहा तो उसके बारे में कहने से बचना चाहिएI भावनाओं की रौ में बहकर किसी विवादास्पद मुद्दे पर लिखना मेरे विचार से उचित नहीं हैI पहली कथा अच्छी है, मगर और बेहतर हो सकती थीI वेश्या शब्द के इस्तेमाल पर दोबारा गौर करेंI दूसरी लघुकथा में सन्देश भले ही नकारात्मक निकल कर आ रहा है लेकिन यहाँ बेटी की कमाई पर पलने वाले एक परिवार की मानसिकता को अच्छी तरह उभारा गया हैI बधाई स्वीकार करें अर्चना त्रिपाठी जीI
दोनों लघुकथा भाव,भाषा और संवाद की दृष्टि से अच्छी है. बधाई आदरणीय अर्चना जी.
हार्दिक बधाई आदरणीय अर्चना जी। बहुत खूबसूरत लघुकथायें ।
आदरणीया अर्चना दी आपकी दोनों कथाएं अच्छी है पर पहली कथा में वैश्या शब्द खटक रहा है कृपया अन्यथा न लीजियेगा | सादर |
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