For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अक्सर मैं फूलों को बचाया करता हूँ,--ग़ज़ल

2212/2212/2212

अक्सर मैं फूलों को बचाया करता हूँ,

काँटो से मैं खुद को सजाया करता हूँ।



इन मन्दिरों में मस्जिदों में जाना क्या,

कुछ भूखे बच्चों को खिलाया करता हूँ।



रोता बहुत हूँ पर तुने जाना नही,

गम को मियाँ हँस कर छुपाया करता हूँ।



मुझसे भी मिलने गाँव तुम आया करो,

मै सब को आईना दिखाया करता हूँ।



मै प्यार मे जीता करूं ! चाहत नही,

मै प्यार मे सब हार जाया करता हूँ।

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 563

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 11, 2017 at 8:24pm
जनाब हेमन्त कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
एक बात आपको बताना चाहता हूँ वो भी इसलिये कि आप अभी सीखने के इच्छुक हैं,वो ये कि ग़ज़ल सिर्फ़ बह्र साधने का नाम नहीं है,इसके लिए अच्छा कथ्य,शिल्प,मिसरों की चुस्त बंदिश भी ज़रूरी होती है,मैं हर नये सीखने वाले को ये मश्विरा देता हूँ कि अपनी बनाई हुई ज़मीन में ग़ज़ल न कहें मश्क़-ए-सुख़न(अभ्यास)के लिये जरूरी है कि पुराने उस्तादों के मिसरे पर ग़ज़ल का अभ्यास करें उसके बाद जब कुछ कामयाबी मिल जाये तब अपनी बनाई हुई ज़मीन पर ग़ज़ल कहें,उम्मीद है थोड़े को बहुत समझते हुए मेरी बात पर ध्यान देंगे,आपसे बहुत सी आशाएं जुडी हैं,मेरी शुब्जमनाएँ आपके साथ हैं ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 8:23pm

आ. हेमंत जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है.... और भी बेहतर हो सकती थी/..
.
रोता बहुत हूँ पर तुने जाना नही,.... इस मिसरे की तक्तीअ कर के देखिये...

गाँव आने से आईने   का सम्बन्ध भी नहीं जुड़ रहा है ..
सादर 

Comment by Ravi Shukla on May 11, 2017 at 4:13pm

आदरणीय हेमंत जी अच्‍छी गजल कही है बधाई

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 10, 2017 at 8:24pm
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय..सादर
Comment by Hemant kumar on May 10, 2017 at 6:29pm
आदरणीय मिश्रा जी ग़ज़ल की सराहना और आपके प्यार के लिए बहुत बहुत धन्ययवाद!
जी अभी अभी ही मैने यह मंच ज्वाइन किया है दो चार ग़ज़ल ही ले दे के पोस्ट हुई है..
सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 10, 2017 at 5:42pm
आदरणीय हेमंतजी पहली बार आपकी रचना को पढ़ने का सुअवसर मिला रचना अच्छी लगी रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by Hemant kumar on May 10, 2017 at 3:48pm
आदरणीय आरिफ सर मेरी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ..
सादर...
Comment by Mohammed Arif on May 10, 2017 at 1:39pm
आदरणीय हेमंत कुमार जी आदाब,हर शे'र लाजवाब । बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शे'र दर शे'र दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
39 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service