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वज़्न - 221 1222 221 1222
पिजरे से परिंदे को आज़ाद नहीं करते ।
कुछ लोग मुहब्बत को आबाद नहीं करते ।।

फ़ितरत है पतंगों की शम्मा पे मचलने की ।
ऐसे जुनूं पे आलिम इमदाद नहीं करते ।।

वह दर्द मिटाने का वादा किया था वरना ।
रह रह के मुकद्दर को हम याद नही करते ।।

ज़ालिम की अदालत में सच पर गिरी है बिजली।
मालूम अगर होता फरियाद नही करते ।।

वो साथ निभाएंगे कहना है बहुत मुश्किल ।
वो वक्त कभी हम पर बर्बाद नहीं करते ।।

हसरत ही मिटा बैठे कुछ लोग ज़माने में ।
खुशियों की तमन्ना को ईज़ाद नहीं करते ।।

दरिया का समंदर से मिलने का इरादा है ।
बेबाक भरोसे पर सम्वाद नहीं करते ।।

देखेंगे नहीं मुझको गर राज पता होता ।
महफ़िल की बड़ी लम्बी तादाद नहीं करते ।।

मौलिक अप्रकाशित

नवीन मणि त्रिपाठी

Views: 512

Comment

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Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on May 25, 2017 at 3:47pm
खूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारक हो।
Comment by narendrasinh chauhan on May 24, 2017 at 11:40am

सुन्दर रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2017 at 8:10pm

आदरणीय नवीन भाई , अच्छी गज़ल  कही है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Gajendra shrotriya on May 23, 2017 at 3:10pm
अच्छी गज़ल है। गुणीजनों के परामर्श द्वारा यथोचित सुधार अपेक्षित हैं। शुभकामनाएँ।
Comment by Shyam Narain Verma on May 23, 2017 at 12:48pm
वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 9:37am

आदरणीय Naveen Mani Tripathi जी, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है है, इन दो मिसरों को थोडा देख लें बह्र ...

वह दर्द मिटाने का वादा किया था वरना ।
ज़ालिम की अदालत में सच पर गिरी है बिजली।

Comment by Mohammed Arif on May 23, 2017 at 8:11am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल । हर शे'र उम्दा । दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ क़ुबूल करें ।

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