आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया संगीता जी आपकी रचना पसंद आयी आदरणीय शेख जी के बिचारों को पढ़कर नयी सोच मिली रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
बहुत बढ़िया, शानदार
सुरभि जा चुकी थी ।प्रिंसिपल ए सी में भी पसीने से लथपथ खड़ा था । ----------------अनावश्यक
प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का सदप्रयास हुआ है आ० डॉ संगीता गांधी जी, हार्दिक बधाई प्रेषित है. आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी व भाई उस्मानी जी की बातों का संज्ञान अवश्य लें.
आदरणीया डॉ. संगीता जी, आपने अपनी लघुकथा में अच्छा सन्देश देने की कोशिश की है किन्तु वह नाटकीय अधिक हो गयी है. इस सन्दर्भ में आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी जी ने आपकी लघुकथा की बहुत अच्छी समीक्षा की है. आप उसका अवश्य संज्ञान लें. आयोजन में सहभागिता हेतु मेरी तरफ से हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ संगीता गांधी जी।गोष्ठी में सहभागिता एवम लाज़वाब लघुकथा हेतु।जो लोग हिंदी को महत्व नहीं देते, उनके लिये एक अच्छा सबक़।
तमाचा
राम नगर की पी जी कॉलेज में रामनगर की रहने वाली टीना और छात्रावास में रहने वाली रीना की मुलाक़ात हुए चंद रोजात ही हुए थे किन्तु एक जैसे व्यक्तित्व, कद काठी और सुन्दरता जैसी खूबियों ने दोनों को इतना करीब ला दिया था मानो एक लम्बे अरसे से वो दोस्त हों / दिवाली के अवकाश के बाद आज टीना रीना से मिलने छात्रावास पहुँची तो उसकी आँखों में नमी और उसके रुख पर सूखे हुए आंसुओ की लकीरे देखकर हतप्रभ थी / “ क्या हुआ रीना ..कोई बात है क्या ..घर की याद आ रही है क्या ..या कोई और है जिसकी याद मे आँसू बहा रही हो मेरी जान :” टीना ने माहौल को सामान्य बनाते हुए कहा / “ ऐसा कुछ भी नहीं है “ रीना ने बड़ी दबी आवाज में कहा / “ कुछ तो होगा ..तुम मुझे बताना नहीं चाहतीं.- तुमको मेरे कसम है “ “नहीं टीना कुछ भी तो नहीं है “ “ इसका मतलब तुम मुझे अपना दोस्त नहीं मानती हो “ “ ऐसा नहीं है रीना “ रीना ने फफककर रोते हुए कहा टीना आज रामनगर के बिधायक के कुछ गुर्गे आज आये थे और उन्होंने कहा है कि आज शाम को होटल स्वप्निल के कमरे में पहुँच जाना , बिधायक जी ने बुलाया है – यदि नहीं पहुँची तो अंजाम समझ लेना “ सुनते ही टीना के माथे पर लकीर खिंच गयीं – रामनगर के बिधायक – ये कैसे हो सकता है “ मन ही मन तमाम प्रश्नों में उलझी टीना ने अगले ही पल सहज होते कहा रीना तुम कहीं नहीं जाओंगी ..मेरे भैया भी पुलिस में बहुत बड़े अधिकारी हैं , तुम सब मुझपर छोड़ दो ..आखिर मैं किस दिन काम आऊँगी “ नहीं टीना , तुम उन लोगों को नहीं जानती हो – “ रीना के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे / “नहीं रीना तुम कहीं नहीं जाओगी – बस मैंने कह दिया –तुमको मेरी कसम है” रीना को आदेश के लहजे में कहकर टीना आनन् फानन में प्रस्थान कर गयी और ठीक शाम को सात बजे मुह पर चुनरी लपेटे होटल स्वप्निल के कमरे में पहुंचकर दरवाजे पर दस्तक दे दी / “ कम इन , दरवाजा खुला है “ कमरे के अन्दर से विधायक महोदय की आवाज आयी टीना बिना कुछ कहे विधायक से थोड़ी दूर रखे सोफे पर सर झुकाकर बैठ गयी /” तुम्हे ६ बजे बुलाया था – अब आ रही हो – आइन्दा से ऐसी गलती नहीं होनी चाहिए – जब से तुम्हे कालेज के कार्यक्रम में देखा है दिल को पल भर का भी करार नहीं है , अब ये शर्म छोडो और चेहरे से ये नकाब उठाओं ताकि हम भी तो चाँद के दीदार कर सकें “बेचेनी में अंगडाई लेते हुए विधायक जी ने अभी अपनी बात पूरी की भी न थी कि टीना ने अपने चेहरे से चुनरी हटा दी और विधायक की तरफ मुखातिब हो गयी / “ अरे ! बेटा टीना तुम यहाँ क्या कर रही हो “ विधायक जी अपने चेहरे से पसीना पोंछते हुए बोले “ हाँ पापा मैं – क्या हुआ रीना को यहाँ क्यों बुलाया था – ऐसा क्या है रीना के पास जो मुझमे नहीं है –रीना आ सकती है तो मैं क्यूँ नहीं “ टीना के जवाबों की झड़ी लगते ही विधायक जी को ऐसा तमाचा लगा कि वो तकिया सर पर रखकर बिस्तर पर औंधे लेट गए उनके पास न तो टीना से नजर मिलाने की हिम्मत थी न ही सवालों के जवाब / बेटी के तमाचे ने उन्हें बेटियां क्या होती हैं शायद इसका अहसास जरूर करा दिया था/
मौलिक व अप्रकाशित
आदरनीय आरिफ जी आपके अमूल्य मशविरे पर अमल अवश्य करूंगा और सतत प्रयास करूंगा कि इसकी पुनरावृत्ति न होने पाए .रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहित हूँ सादर
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