सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार चौहत्तरवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
16 जून 2017 दिन शुक्रवार से 17 जून 2017 दिन शनिवार तक
इस बार छन्दों में सरसी छन्द और कुण्डलिया छन्द को रखा गया है. -
यह जानना रोचक होगा, कि सरसी छन्द दोहा छन्द की ही तरह होता है, लेकिन यह 16-11 की यति पर निबद्ध होता है !
होली का जोगिरा सारा रारा के रूप यह अत्यंत प्रचलित है. साथ ही गीतों में इसका विपुल प्रयोग होता है.
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.
इन छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना करनी है.
प्रदत्त छन्दों को आधार बनाते हुए नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो दोनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
[प्रस्तुत चित्र निजी अलबम से]
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
कुण्डलिया छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
सरसी छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 16 जून 2017 दिन शुक्रवार से 17 जून 2017 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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विशेष :
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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नया हुआ या हुआ पुराना,लोहा है बेकार
बिना तपे औ बिना पिटे वह,लेता कब आकार........वाह ! सत्य कहा है.
आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, प्रदत्त चित्र पर सुंदर सरसी छंद रचे हैं आपने. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.
सरसी छंद
(1)
सँड़सी, भट्टी और हथौड़ा, हैं उसके औजार।
तपा रहा है लोहा पलपल, जिसका नाम लुहार।।
फरफर फरफर चलकर देती जब धौंकनी बयार।
भकभक भकभक भट्टी सुलगे, कोल बने अंगार।।
(2)
हल की फाल बनाए चाहे, खुरपी, छैनी, ढाल।
तपते लोहे पर देता है, सिर्फ हथौड़ा ताल।।
करते करते यही काम नित, हुए धवल सब बाल।
बदल न पाया लेकिन उसका, गुरबत वाला हाल।।
(3)
हँसिया खुरफी कुलहाड़ी भी, यही करे उत्पन्न।
जिनसे खेतों में उपजाता , कृषक अपना अन्न।।
लेेकिन कृषक जैसा ये भी, अब तक वही विपन्न।
जबकि लुटेरों चोरों का भी, जीवन अधिक प्रसन्न।।
(4)
पटली उसका सिंहासन है, मेहनत उसका धर्म।
यही सोच कर करता रहता, वह पुस्तैनी कर्म।।
छोड़ गई जब अगली पीढ़ी, इसे मान कर शर्म।
उसकी पीड़ा का कोई भी, समझ न पाया मर्म।।
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीय लक्ष्मण भाईजी
खूब साधा है आपने सरसी छंद को , चार चरणों की तुकांतता भी लाजवाब है। हार्दिक बधाई
हल की फाल बनाए चाहे, खुरपी, छैनी, ढाल।
तपते लोहे पर देता है, सिर्फ हथौड़ा ताल।।
करते करते यही काम नित, हुए धवल सब बाल।
बदल न पाया लेकिन उसका, गुरबत वाला हाल।।...........वाह ! वाह !प्रदत्त चित्र को बहुत सुंदर शब्द और भाव मिले हैं.
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रदत्त चित्र पर बहुत ही उत्तम सरसी छंद रचे हैं आपने बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी मुझे लगता है आपने 'कृषक' की ४ मात्राएँ ले ली हैं. देख लें. सादर.
वाह ... वाह .. बहुत सुन्दर सरसी छंद ... प्रदत्त चित्र पर सराहनीय प्रस्तुति .... बधाई आदरणीय धामी साहेब ।
//कुण्डलियां छंद//
हाथ हथौड़ा वह लिये, छड़ पर करते वार ।
दो पैसे की चाह है, जीने की दरकार ।
जीने की दरकार, काम सबको है करना ।
बाल युवा अरू वृद्ध, पेट सबको है भरना ।
चलना सबको राह, रहे सकरा या चौड़ा ।
गढ़ता वह औजार, हाथ पर लिये हथौड़ा ।।
.....................................................
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय रमेश भाई
इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। चौड़ा के लिए राह के स्थान पर मार्ग उचित है
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