आदरणीय साथिओ,
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बहुत सुंदर लघुकथा आदरणीय प्रतिभा पांडे जी . बधाई आप को .
खुद जिस भंवर में फंसे हुए थे कुंदन महाराज उसमे उस बच्चे को फंसता देख परेशान हो जाना भी उनके चरित्र की एक महानता ही समझो वरना आज के जमाने में तो एक कुँए में गिरा तो चाहेगा दूसरा भी गिरे| यही सकारात्मकता से भरा आदर्श भाव इस लघु कथा की विशेषता है जो सबके लिए प्रेरणादायी है बहुत- बहुत बधाई इस सुंदर सार्थक बेहतरीन लघु कथा हेतु प्रिय प्रतिभा जी |
आ. प्रतिभा जी, प्रदत्त विषय का जिस ख़ूबसूरती से आपने निर्वहन किया है वह काबिले तारीफ़ है. भंवर को आपने एक अलग ही अन्दाज़ में पेश किया है. एक सच्चा व्यक्ति ही किसी दूसरे को उस भंवर से निकलते देख कर ख़ुश होगा जिसमें वह स्वयं फंसा हो. इस उम्दा और प्रेरणाप्रद लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
वाह, बहुत कमाल की रचना है प्रदत्त विषय पर, नहीं कहते हुए भी बहुत कुछ कह गयी आपकी रचना| बहुत बहुत बधाई इस सारगर्भित रचना के लिए
आयोजन में अक्सर लेखक दिए गए विषय को ही अपनी लघुकथा का शीर्षक बना लेता है जो कई बार ठीक नहीं लगता परन्तु आपकी लघुकथा का शीर्षक ही लघुकथा का वैशिष्ट्य है। इससे सटीक शीर्षक हो ही नहीं सकता था। आदरणीय प्रधान संपादक जी की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत । प्रस्तुत लघुकथा की सूक्ष्मता देखते ही बनती है । नतमस्तक आपकी लेखनी के प्रति । पूरी लघुकथा में जो परिवेश निर्माण किया है वह प्रशंसनीया है । हार्दिक शुभकामनाएं ।
भंवर
गंगा नदी अपने उफान पर थी। शाम का समय था। लोग नदी के तट पर पानी का वेग से जाना देख रहे थे। पानी में जगह-जगह भंवर चल रही थी। पानी दूर से आता था और लगातार वहां पर चक्कर काटता रहता था वह अपने पास के चारों तरफ के पानी का अपने में समेट कर नीचे की तरफ दबा देता था। लोगों को इसमंे रस मिल रहा था। तभी अचानक उस पार से गायों का समूह पानी में उतर गया और तैरने लगा। कुछ गाये जब उस भंवर के पास आईं तो उसमें पड़ गई और चक्कर काटने लगी। तट पर बैठे लोगों में हलचल मच गयी । क्योंकि गायें उसी गांव की थी। जिसे गांव के तट पर बैठे लोगों ने पहचान लिया था। भंवर इतना तेज था कि किसी की हिम्मत नहीं पड़ रह रही थी कि लोग पानी में उतरें और गायों की सहायता करें।
वहीं पर योगेन्द्र बैठे थे। उन गायों में उनकी भी गाय थी। वे तैरना जानते थे। अच्छे तैराक थे। वे पानी में उतर गये और भंवर के पास तक पहुंच गये। तट पर बैठे लोग सन्नाटा खाये उनको जाते देख रहे थे। वहां पर पानी बहुत खतरनाक ढंग से बह रहा था। काफी दूर से ही वह भंवर अपने पास पानी को खींच रहा था। इसलिए जान जाने का डर था। लेकिन योगेन्द्र डरे नहीं और साहस के साथ आगे बढते रहे। वे गायेां के पास पहुंचे और धैर्य के साथ धीरे-धीरे पानी के साथ बहते हुए गायों को भंवर के बहाव से बाहर निकालने की कोशिश करते रहे। चार-पांच बार चक्कर काटने के बाद वे गायों को भंवर से निकालने में सफल हुए। उसके बाद गायों को साथ लिए हुए किनारे पर आये। तट पर मौजूद लोगों ने सम्मान जनक निगाह से उन्हें देखा। और गांव में उनकी निडरता और अच्छी तैराकी की चर्चा रही।
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