आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय कल्पना जी।बेहतरीन प्रस्तुति। आदरणीय योगराज भाई जी ने एकदम सच कहा है। मुझे भी आपकी लघुकथा लेखन की प्रगति देखकर बहुत खुशी होती है। मगर अभी भी थोड़ा सुधार चाहिये।१. प्रथम पंक्ति में "अकबार" को अखबार कीजिये।२. आठवीं पंक्ति में"उसे नौकरी मिल गयी है साहिब लाला की दुकान पर" इस वाक्य में "साहिब और लाला के बीच एक कौमा दीजिये।सादर।
धन्यवाद् आदरणीय तेज वीर सिंह जी | संकलन आने पर सर की परमिशन से संशोधन कर दूंगी आदरणीय | सादर |
धन्यवाद् आदरणीया नीता दी | कथा के मर्म को समझने के लिए |
सादर धन्यवाद् जनाब मोहम्मद आरिफ जी , बाल मजदूरी पर रोक है मानती हूँ पर क्या यह खत्म हुई है ? सडको पर अख़बार बेचते हुए बच्चे दिखाई नहीं देते है ? आदरणीय मेरा यह आशय कभी नहीं था कि बाल मजदूरी को बढ़ावा मिले , मेरी इस कथा को लिखने का उद्देश्य यह था कि गरीबी कुछ नहीं देखती , क्या उस माँ को पीड़ा नहीं होती होगी जब उसका छोटा सा बच्चा अपना घर चलाने के लिए मेहनत मजदूरी करने पर मजबूर हो जाता है ? हम सिर्फ काम को ही क्यों देख रहे हैं छोटे बच्चो से भीख भी तो मंगवा रहे क्या यह अपराध नहीं ? मैं बस इस कथा के माध्यम से गरीबों की मजबूरी दिखाना चाह रही थी |
आपको यह प्रयास कमझोर लगा , प्रयास करुँगी बेहतर लिख सकूँ | सादर |
आदरणीया कल्पना दी, आपकी यह रचना पढ़कर मन प्रफुल्लित हो उठा| बेहतरीन से भी बेहतर रचना है| अंतिम दो पंक्तियों में सुधीर की मानसिकता का सजीव चित्रण है, जो कि कम शब्दों में ही बहुत कुछ कह रहा है| दिल से बधाई स्वीकार करें|
धन्यवाद आदरणीय चंद्रेश भैया |
लघुकथा का शीर्षक बहुत उम्दा है । सुधीर की अंतस की पर्तों से निकला 'ऐसा सुख मेरी मॉं को कब मिलेगा भगवान' पाठकीय संवेदना को एकदम से आंदोलित करता है । तीक्ष्ण व प्रभावोत्पादक लघुकथा प्रेषण हेतु हार्दिक शुभकामनाएं ।
धन्यवाद् आदरणीय सर भैया | धन्य हुआ यह प्रयास आज तो , निशब्द हो गयी हूँ आज तो |
मैं खुद डिग्री करने के बाद तकरीबन तीन साल बेरोजगार रहा और अपनी माँ उस सुख के लिए तरसते देखा आ० कल्पना भट्ट जी, इसलिए मुझे यह कथा दिल के बहेद करीब लगी.
सर अपने बच्चों की बेरोज़गारी हर माँ को खलती है , मैं तो बेटी हूँ पर यकीन माने जब पहली जॉब की थी तो माँ की आँखों में आसूं थे , वे बोली थी कौन कहता है मेरा बेटा नहीं हैं , सच में रोज़गार मिलने पर सारी दुनिया की ख़ुशी एक तरफ और माँ की ख़ुशी एक तरफ | सर सच मैं आज खुद को धन्य मानती हूँ आप दोनों ने इस कथा पर आकर अपनी बहुमूल्य टिपण्णी देना , निशब्द हुई हूँ | पर यह भी सच है जो सीख रही हूँ यहीं से सीख रही हूँ |
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