आदरणीय साथिओ,
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दुर्भाग्य कंप्यूटर का कीबोर्ड मिसबिहेव कर रहा है और बदतमीज़ी पर आमादा है इस लिए थोड़े कहे को ही बहुत समझें भाई वीर मेहता जी.
विषय को पूर्ण परिभाषित करती और यथार्थ के एक पक्ष को दर्शाती बहुत ही भावात्मक रचना का सृजन किया है आदरणीय वीर मेहता भाई जी| सादर बधाई स्वीकार करें|
बहुत खूब वीर भाई ! लघुकथा कैसे लिखी जाए प्रस्तुत लघुकथा उसका बेहतरीन उदाहरण है । पिछले दिनों कहीं पढ़ा था कि पेट की भूख रोटी से शांत होती है परन्तु यदि रोटी सलीके से गोल, नर्म और पतली बने तो भूख के साथ साथ आत्मा भी तृप्त हो जाती है । भाई जी आपकी रोटी (कथानक) न सिर्फ गाेल, नर्म, पतली है बल्िक इसका ज़ायका भी बहुत उम्दा है जो अंतरआत्मा को त़ृप्त करता है । बहुत कुछ सीखा जा सकता है आपकी लघुकथाओं से । /उसके दिन कब रात में बदल जाते/ बहुत ही गहन अर्थ समोए हैं इस वाक्य में । उसके दिन (सुख) कब रात (दुख) मेें बदल जाते ... वाह वीर भाई ! /उसके गुजरे हुए कल और आने वाले कल, दोनों में ही बुआ को अपना अतीत नज़र आ रहा था/ यह एक पंक्ित बुआ के सारे जीवन की झांकी प्रस्तुत कर रहा है । यह भी आपके लेखकीय कौशल का शानदार नमूना है। लघुकथा में कसावट का सही अर्थ बताती इस पंक्ति से शाब्िदक मितव्ययता के लिए कम शब्दों में अधिकाधिक जानकारी कैसे प्रदान की जाती है सीखा जा सकता है । /................. दूर बैठी बुआ,/ यहां डॉट्स का अनावश्यक प्रयोग उचित नहीं लग रहा । और लघुकथा के अंत में नायिका का संवाद बहुत लंबा हो गया है जिससे लघुकथा कुछ बोझिल और उपदेशात्मक सी प्रतीत हो रही है । शीर्षक चयन उत्तम है । सादर शुभकामनाएं ।
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