For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज तू जो मुझे बदला सा नज़र आता है..............संतोष.

अरकान हैं 'फ़ाइलातून फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन

आज तू जो मुझे बदला सा नज़र आता है
दोस्ती में तिरी धोका सा नज़र आता है

तूने छोड़ा था मुझे यार किसी की शह पर
इसलिये आज तू तन्हा सा नज़र आता है

ये तो शतरंज की बाजी है बिछाई उसकी
तू तो इस खेल में मुहरा सा नज़र आता है

है शिकन साफ़,शिकस्तों की तिरे माथे पर
तू हमें कुछ डरा सहमा सा नज़र आता है
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 955

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by santosh khirwadkar on August 31, 2017 at 6:43pm

आदरणीय अजय जी , धन्यवाद !!

Comment by santosh khirwadkar on August 29, 2017 at 4:50pm
जी आदरणीय गिरिराज जी , इसमें कोई शक़ नहीं कि इस मंच पर उपलब्ध सामग्री ही हम जैसे नवीन प्रशिक्षुओं के लिये काफ़ी है! आभार!!
Comment by ajay sharma on August 28, 2017 at 11:40pm

बहुत खूब 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 28, 2017 at 9:52pm

आ. संतोष भाई , गज़ल के प्र्ति आपकी रुझान का स्वागत है .. आ. समर भाई जी की सलाह पर अमल कीजिये । किताब खरीदना एक दम ज़्रूरी नही है , पहले आप मंच मे उअपलब्ध  '' गज़ल की बातें ''  और ग़ज़ल की कक्षा मे दिय पाठों का अध्ययन कीजिये , वही बहुत काफी है । फिर किताब की सोचियेगा ।

Comment by santosh khirwadkar on August 28, 2017 at 10:59am
धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण जी , आप के इस उत्साहवर्धन के लिये हृदय से आभार!!
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 28, 2017 at 9:14am
हार्दिक बधाई । प्रयास जारी रखिए प्रबुद्ध जनों का मार्गदर्शन मिलता रहेगा । आप बेहतरीन लिखेंगे यही आशा करते हैं...शेष शुभ शुभ...
Comment by Samar kabeer on August 27, 2017 at 9:49pm
ख़ुश रहो अज़ीज़म,मेरे वश में जो है मैं उसमें कभी कमी नहीं करता,आपकी महब्बतें सर आँखों पर,इसे ऐडिट कर दीजियेगा ।
Comment by santosh khirwadkar on August 27, 2017 at 7:34pm
अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ज़िन्दाबाद.....चरण स्पर्श आदरणीय श्री समर साहब , आज जैसे शब्दों में प्राण आ गये...आप का ये आशीर्वाद स्वरूप मार्गदर्शन जीवन भर नहीं भूलूँगा..मैं निश्चित ही इस अभ्यास हेतु पुस्तकें क्रय करूँगा! इस मंच से आज ये स्पष्ट कर दूँ कि जब कभी मुझे पढ़ने का मौका मिलेगा ,आप के इस मार्गदर्शन स्वरूप आशीर्वाद को साझा किये नहीं पढ़ूँगा!
पुनः हृदय से आभार!!!!
Comment by Samar kabeer on August 27, 2017 at 6:43pm
जनाब संतोष जी आदाब,

आज तू जो मुझे बदला सा नज़र आता है
दोस्ती में तिरी धोका सा नज़र आ5या है

तूने छोड़ा था मुझे यार किसी की शह पर
इसलिये आज तू तन्हा सा नज़र आता है

ये तो शतरंज की बाजी है बिछाई उसकी
तू तो इस खेल में मुहरा सा नज़र आता है

है शिकन साफ़,शिकस्तों की तिरे माथे पर
तू हमें कुछ डरा सहमा सा नज़र आता है
-------
ये मैंने आपकी ग़ज़ल की इस्लाह कर दी है,इसमें क़ाफ़िया अलिफ़ का है और रदीफ़'नज़र आता है'और इसके अरकान हैं 'फ़ाइलातून फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन ।
लेकिन भाई अध्यन के बग़ैर काम नहीं चलेगा,ओबीओ पर आलेख हैं,कुछ किताबें ख़रीदना होंगी ।
Comment by santosh khirwadkar on August 27, 2017 at 12:45pm
आप के विचार का स्वागत ब्रजेश जी , किंतु न सफलता की चाह हैं न असफलता से डर या संकोच ......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
23 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
23 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service