आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय अंजना बाजपयी जी। बेहतरीन लघुकथा।
आ. अंजना जी, नौकरी और व्यापार के द्वंद्व को दिखाने के लिए आपको या तो कारखाने का प्रकार (अर्थात् कोई छोटा कारखाना) स्पष्ट करना चाहिए था अथवा किसी छोटी दूकान आदि का प्रयोग करना चाहिए था. इस सन्दर्भ में इस पंक्ति //कर्मचारी बेरोजगार हो जायेंगे..।'// को हटा देना बेहतर होगा. प्रदत्त विषय से न्याय करती इस अच्छी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
अच्छी संदेशपरक लघुकथा कही है आ० अंजना बाजपेई जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें और सुधि साथिओं की सलाह का गंभीरता से संज्ञान लें.
बढ़ीया प्रयास आदरणीय अंजना जी । आपकी लघुकथा की पंक्तियों / पढ़ाई केवल नौकरी के काम आती है क्या...,एक युवक को चाट का ठेला संभालने में शर्म नहीं , तो उसे कारखाना संभालने में क्यों.., क्या पिताजी के बाद कारखाना बंद हो जायेंगे...और उनकी मेहनत बेकार जायेगी...
कर्मचारी बेरोजगार हो जायेंगे..।/ में लेखकीय प्रवेश का आभास हो रहा है । मेरे विचार से तो इन पंक्ितयों की आवश्यकता ही नहीं थी। लघुकथा में केवल कुछ संकेत ही देने होते हैं जो कि लड़के के ठेला लेकर आने से दे दिया गया है । इसे देखकर ही रजत मॉं को फोन करता तो भी पाठक सब बात समझ जाता और कथा में कसावट भी बढ़ती । शीर्षक के सबंध में एक सविनयन निवेदन- शीर्षक यदि 'सुनहरी शाम' के स्थान पर 'उजली शाम' हो तो उसमें कुछ कलात्मकता का समावेश प्रतीत होगा । शाम सुनहरी तो होती ही है - जब सूर्य ढल रहा होता है तो एक बिन्दु पर आकर आसमान में सुनहरी सी छटा छा जाती है। 'उजली शाम' यानि अंधेरा भी कुछ उजाला उजाला सा लगने लगा। मैनें देखा है कि दो विपरीत शब्द भी अक्सर एक प्रभावशाली शीर्षक बनते हैं। बहरहाल आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक शुभकामनाएं । सादर
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