आदरणीय साथिओ,
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बहुत ही सुन्दर , भावुक कविता जैसी कहानी , सन्देश भी इतनी कोमलता से उभरा कि बस वाह , हार्दिक बधाई इस कथा पर आदरणीया जानकी जी
आदरणीया जानकी जी, प्रदत्त विषय को रूपायित करती सुन्दर लघुकथा के लिए साधुवाद! इस लघुकथा में प्रवाह है, जीवंतता है और संवेदना से भरा है |
भास्कर
भास्कर का निर्णय सुन उसके माता-पिता दोनों नाराज़ हो गये।माँ ने तो खाना-पीना छोड दिया था।
" दोनों मेंसे किसी एक को चुन लो या तो उसे या हमें।"पिताजी ने कड़ा रुख अपनाते हुए भास्कर से सख़्त आवाज़ में कहा।
" किंतु पिताजी ,जब भी मैं वहाँ जाता हूं, उसे देखता हूं, उसकी आँखें मुझे अपनी ओर खींचती हैं।कुछ कहती हैं...अजीब सा जादू है उसमें ,जो चुम्बक की तरह मुझे आकर्षित करता है।"
" बकवास है यह!तुम जानते नही हो, तुम्हारे इस कदम से रिश्तेदारों में थू-थू होगी।हमारा समाज इस रिश्ते को नही अपनायेगा!कोर्ट-कचहरी के रास्ते नापने पडेंगे सो अलग..और फिर शादी !!"
" मैं सबकुछ कर लूंगा पिताजी, बस आप और माँ ,हाँ कर दीजिए।" बेटे की ज़िद देख माँ-पिताजी ने स्वीकृति दे दी किंतु भास्कर की उम्र इस चाहत के बीच बाधा बन गई।आखिर मानवीय आधार पर कोर्ट को चाहत के आगे झुकना पड़ा।कोर्ट का फैसला भी उसके पक्ष में हुआ।
अविवाहित भास्कर ,डाऊन सिंड्रोम से पीडित अपने दत्तक पुत्र , "स्पेशल बेबी - उदय " को गोद में लिये हुए अनाथाश्रम से खुशी-खुशी बाहर आया।उदय भी किलकते हुए ,अपने पापा के गालों को सहला रहा था तो कभी उनके शर्ट के बटन से खेल रहा था।तभी वहाँ एक सुंदर सी लडकी आ खडी हुई।
" भास्कर..."
" हाँ रश्मि, यही है मेरी ज़िंदगी की रोशनी....मेरा उदय "
" अब से मेरी ज़िंदगी की भी....मैं इसकी मम्मी बनना चाहूंगी।" कहते हुए रश्मि ने उस बडे सिर ,चपटी नाक ,निश्छल प्यार बरसाती मासूम आँखों वाली नन्हीसी जान को अपने सीने से लगा लिया।करीब खडे हुए भास्कर के पिताजी ने भास्कर को गले लगाते हुए कहा-
" भास्कर..आज तू आसमाँ से ज़मीं पर उतर आया रे.."
मौलिक व अप्रकाशित
सादर आभार और धन्यवाद् आदरणीय
जी आदरणीय वंही से कथा को मोड़ने का प्रयास किया है । कथा पसंदगी हेतु सादर आभार
इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार आदरणीय बहुत बहुत धन्यवाद् ।
सादर आभार आदरणीय धन्यवाद् ।
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