आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय राहिला जी , भावपूर्ण कथा है आपकी , पर मैं आदरणीय योगराज सर से सहमत हूँ | हार्दिक बधाई आपको इस प्रस्तुति के लिए |
बढ़ीया प्रयास आदरणीय राहिला जी । इस लघुकथा में मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया /मैं भी बम धमाकों की.....,लेकिन अब्बा की क़सम मैनें कुछ नहीं किया। मेरा तो नाम ही काफ़ी था आतंकी होने के लिए।"कहते हुए वह नौजवान, बच्चों सा सिसक पड़ा/ ये संवाद । लघुकथा में संकेतों का प्रयाेग किस बाखूबी से किया जाता है यह उसका उदाहरण है। /अब्बा कसम/ कहना बहुत ही सटीक संकेत है। बाकी लघुकथा पर तो गुणीजन टिप्पणी दे ही चुके हैं। सादर
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