आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।"जैसा बोयेंगे वैसा ही काटना पड़ेगा" कहावत को चरितार्थ करती बेहतरीन लघुकथा।
मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब , लघुकथा में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
मुह्तरमा राजेश कुमारी साहिबा , लघुकथा में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
इस लघुकथा के शीर्षक, और उस शीर्षक को सार्थक करती हुई प्रस्तुति ने मन मोह लिया भाई सुनील वर्मा जी. परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप में आधुनिक शिक्षा पर भी गहरा तंज़ कास दिया है. मुझे याद है कि 1995 या 96 में एक लड़का जोकि बी.ई कंप्यूटरस का छात्र था फ्लॉपी लेकर मेरे घर एक फ़ाइल (ऐश्वर्या रॉय का वालपेपर) लेने के लिए आया. फ्लॉपी 1.44 एमबी की थी और वह प्रोग्राम शायद 2 एमबी का. अब वह बेचारा परेशान हो गया, तो मैंने उसको कहा कि फ़ाइल को कम्प्रेस कर ले. "कम्प्रेस" शब्द उसके ऊपर से निकल गया, उसकी परेशानी समझते हुए मैंने उसको कहा कि फ़ाइल को "ज़िप" कर ले, तब कहीं जाकर बात उसकी समझ में आई. बहरहाल इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है.
लेकिन एक प्रश्न है, यह कथा "फ़रिश्ते" विषय को कैसे संतुष्ट कर रही है? क्या सिर्फ हरिया के फ्यूज लगा देने से? क्योंकि यदि ऐसा है तो बात नहीं बनेगी, क्योंकि कथा का केन्द्रीय भाव तो एक पढ़े लिखे नौजवान में व्यवहारिक ज्ञान की कमी की तरफ इशारा कर रहा है.
आदरणीय सुनील भैया , सहज भाव लिए आपकी इस कथा ने मन मोह लिया है, पढाई लिखाई और डिग्री हासिल करना सब कुछ नहीं होता पर व्यावहारिक ज्ञान भी होना चाहिए | पर यहाँ फ़रिश्ते वाली बात नज़र नहीं आई है | उम्मीद है आप अन्यथा न लेंगे | वैसे कथा बहुत सुंदर हुई है | बधाई स्वीकारें |
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