आदरणीय साथिओ,
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प्राचीनता अथवा नवीनता किसी पुस्तक को श्रेष्ठ नहीं बनाती। उसे श्रेष्ठ बनाती हैं उसमें कही गयी बातें,// बहुत बढ़िया आदरणीय महेंद्र जी ,हार्दिक बधाई इस प्रभावशाली कथा पर I
उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार आ. प्रतिभा जी. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
प्रतीकों के माध्यम से लघु कथा बहुत कुछ कहने में सक्षम है एक बेहतरीन सन्देश भी दे रही है जिसके लिए बहुत बहुत बधाई किन्तु ये प्रदत्त शीर्षक फ़रिश्ते को कहाँ संतुष्ट क्र रही है उसमे थोड़ा संशय हैं क्या उस फ़कीर को फ़रिश्ते की नजरों से देखा गया है लघु कथा में ?
लघुकथा को पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभार आ. राजेश मैम. फ़क़ीर को लघुकथा में फ़रिश्ते कि नज़र से नहीं देखा गया है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पवित्र पुस्तकें फ़रिश्तों के माध्यम से ही मनुष्यों तक पहुँचती है. प्रदत्त विषय को मैंने इसी सन्दर्भ में परिभाषित करने का प्रयास किया है. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी ।बेहतरीन लघुकथा।पंच पंक्ति बहुत मारक बन पड़ी है।
ज़र्रनवाजिश का बहुत-बहुत शुक्रिया आ. तेज वीर सिंह जी. हार्दिक आभार. सादर.
फरिश्ते
पिता के असामयिक निधन के बाद दिनेश को अपनी घरेलु जिम्मेवारियों के बीच आगे पढ़ाई जारी रखना असंभव था परन्तु , माॅं के प्रोत्साहन से अभावों के बीच भी उसने अपनी डिग्री पूरी कर अच्छी सरकारी नौकरी पा ली। रिश्तेदार या अन्य लोग जो कभी हाल चाल भी नहीं पूछते थे अब निकटता बढ़ाने लगे और, प्रायः रोज ही एक न एक, जाने अन्जाने लोग विवाह के लिए प्रस्ताव लाने लगे। दिनेश सभी से विनम्रता पूर्वक यह कह कर टालता जाता कि अभी उसे भाइयों को पढ़ाना है, घर की आर्थिक स्थिति को सुधारना है, इसके बाद ही कुछ निर्णय करेगा।
इसी क्रम में, धन और पद का प्रभाव डालते हुए उसके विभाग के एक अधिकारी ने भी यही प्रस्ताव दिया पर उसने अपनी पारिवारिक और आर्थिक स्थिति उनके समकक्ष न होने के विचार से मौन रहना चाहा तब, वे सज्जन बोले,
‘‘अरे, क्यों चिन्ता करते हो संबंध तो हो जाने दो, सब अनुकूल हो जाएगा’’
‘‘ नहीं सर ! हमारा ग्रामीण परिवेश में ढला निम्न स्तरीय परिवार, आपकी प्रतिष्ठा और शहरी उच्च स्तर से बहुत छोटा है। आपकी बेटी मेरे घर में वह सुविधाएं नहीं पा सकेगी जो आपके घर में सहजता से उपलब्ध होती हैं इसलिए, यह संबंध उचित नहीं है।’’
‘‘ पर तुम्हें कौन सा गांव में ही रहना है, हमारे यहाॅं शहर में रहना, वहीं पर ट्रान्सफर करा देंगे ’’
‘‘ सर ! अपने घर में उजाला करने के लिए आप, मेरे घर में अंधेरा क्यों करना चाहते हैं ?’’
‘‘ डियर फ्रेंड ! अपने सुनहरे भविष्य को क्यों दुतकार रहे हो ?’’
‘‘ सर ! आपकी दयालुता के लिये आभार। लेकिन, मेरा सीधा सादा मन कहता है कि मेरा सुनहला भविष्य मेरे पराक्रम की नीव पर ही स्थिर रह सकेगा किसी फरिश्ते की कृपा पर नहीं। ’’
सुनते ही , आफीसर की कार का हार्न जोर से बज उठा।
‘मौलिक और अप्रकाशित’
प्रदत्त विषय से न्याय करती हुई बहुत ही अच्छी लघुकथा, हार्दिक बधाई निवेदित है आ० टी आर सुकुल जी.
विनम्र आभार आदरणीय महोदय।
विनम्र आभार। अप्रत्याशित उपलब्धियों को प्रदान करने वाला आफिसर फरिश्ता ही तो बनना चाह रहा था आदरणीय महोदय।
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