आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ।आपकी इस सोच और विचारधारा से शत प्रतिशत सहमत हूँ क्योंकि इस तरह की एक घटना का मैं भी चश्मदीद गवाह हूँ। बेहतरीन लघुकथा।
आ० ,आपका आशीर्वाद मेरा पाथेय है . सादर
आअ०दीदी , बहुत बल मिलता है जब आपका आशीर्वाद मिलता है . सादर .
अच्छी लघुकथा है बरखा जी, बधाई स्वीकार करें. एक बात आपकी रचना के सम्बन्ध में कहना चाहूँगा.
//डोर बेल बजने पर नीना ने सोचा इस समय कौन होगा// " नीना ने क्या सोचा, आपको कैसे पता चला? इसे रचना में लेखक का अनधिकृत प्रवेश कहते हैं. जो कहना हो पात्र खुद कहे, लेखक इससे बचे.
आदरणीय सर, लेखक का अनाधिकृत प्रवेश को थोडा समझाएं | सादर|
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