आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब ।
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।
समाज के ऐसे नियमों के बारे में सुनकर दुःख होता है पर ये भी सच है कि कई जगह ये आज भी प्रचलित हैं बहुत विचारोत्तोजक कथा ,प्रदत्त विषय को सार्थकता से निभाती हुई ..हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी
बहुत अच्छी लघुकथा कही है आ० तेजवीर सिंह जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें.पूर्णतः प्रदत्त विषय को संतुष्ट कर रही है लघु कथा .
बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीय तेज वीर सिंह जी| मेरी एक जिज्ञासा है, क्या यह प्रथा आज भी कायम है? आपको इस कथा के लिए हार्दिक बधाई|
यह परम्परा अभी भी उत्तर भारत में कायम है मोहतरमा.
धन्यवाद सर|
मुह्तरम जनाब तेज वीर साहिब , प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई
है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
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