आदरणीय साथिओ,
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आ. सभी सुधिजन जिन्होंने रचना पर अपना अमूल्य समय दिया सभी की आभारी हूँ. दिन भर के काम से बहूत थक गई हूँ. अलग-अलग प्रतिक्रिया नहीं दे सकने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. शुभरात्री
अनोखा रिश्ता - लघुकथा –
“बड़ी जीजी, आज कितने साल बाद मिली हो। सब ठीक तो है ना”?
"चंपा, मेरी बहिन, तू तो विदेश में थी| अब तुझे क्या बताऊँ?| तेरे जीजाजी की अकाल मृत्यु के बाद हम पर तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था | हम पर क्या क्या गुजरी थी, बस पूछ मत"?
"कैसे क्या हुआ था जीजी ,थोड़ा खुलासा करो ना"?
"तेरे जीजाजी को खेत में काले नाग ने डस लिया था |एक तरफ़ तो बत्तीस साल की कम उम्र में पति की अकाल मृत्यु का गम| ऊपर से पंचायत का तुगलकी फ़रमान, या तो समाज की प्रथा के मुताबिक , इसका देवर इसके ऊपर चादर डाल कर इसे पत्नी बना ले, नहीं तो इसका सिर मुड़वा कर इसको एक सूती सफ़ेद धोती में घर की बाहरी कोठरी में भेज दो| वहीं रहना होगा |घर में और खासकर रसोई में घुसना सख्त मना"।
"जीजी, तुम्हारा देवर तो बहुत छोटा था ना"?
"हाँ, मेरी शादी के समय तो आठ साल का था। मैंने तो उसके सारे काम किये थे । नहलाना,धुलाना,कपड़े पहनाना, स्कूल भेजना |कई बार तो उसे गोद में बैठा कर खिलाती भी थी"।
"फिर आप कैसे राज़ी हो गयीं उससे शादी को"?
"मेरी रज़ामंदी तो किसी ने पूछी ही नहीं"।
"फिर"?
"फिर क्या, मुझसे पहले तो बबलुआ ने ही विरोध कर दिया। भरी पंचायत में रोने लगा कि जिस औरत ने मुझे माँ का प्यार दिया, उसे मैं किस मुँह से पत्नी बना लूँ और वहीं पास में ही कुएं में कूद गया"।
"अरे बाप रे"।
"गाँव वालों ने बड़ी मुश्किल से बाहर निकाला"।
“फिर क्या हुआ"?
"जब पंचायत ने मेरे लिये विधवा की तरह रहने के नियम गिनाये तो फिर बौखला गया| बोला,यह तो अत्याचार है। पंचायत ने कहा कि इससे बचाना है तो उढ़ा दे चादर"।
"और उसने आपको चादर उढ़ा दी"?
"अरे चंपा, राम जाने क्या हुआ| हम तो बेहोश पड़े थे |यह तो बबलुआ ने ना जाने क्या सोचा होगा जो यह सब संभव हुआ"।
"जीजी, अब तो वह तुम्हारा पति है, अब भी बबलुआ बोलती हो"।
"वह भी तो हमको अभी भी भौजी ही बुलाता है"।
"क्या बात कर रही हो जीजी"?
"हाँ, सच में"।
"पर ऐसा क्यों"?
"उसने मेरे आगे शर्त रखी थी कि भौजी हम केवल समाज और पंचायत के दबाव में यह सब किये हैं।बाकी हमारा और आपका रिश्ता वही रहेगा"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ छोटे लाल सिंह जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी ।
बहुत अच्छी लघुकथा कही है आ० तेजवीर सिंह जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी ।
बहुत ही उम्दा लघुकथा है आ. तेज वीर सिंह जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी ।
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