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2122 1212 22
उसकी खुशबू तमाम लाती है ।।
जो हवा घर से उसके आती है ।।

आज मौसम है खुश गवार बहुत ।
बे वफ़ा तेरी याद आती. है ।।

कितनी मशहूर हो गई है वो ।
कुछ जवानी शबाब लाती है ।।

टूटकर. मैं भी कशमकश में हूँ।
रात उलझन में बीत जाती है ।।

ओढ़ लेती बड़े अदब से वो ।
जब दुपट्टा हवा उड़ाती है ।।

यूँ तमन्ना तमाम क्या रक्खूँ ।
जिंदगी रोज तोड़ जाती है ।।

हम भी दीवानगी से हैं गुजरे ।
जिंदगी मोड़ ढूढ लाती है ।

जुल्फ अपनी सियाह कर लेकिन ।
उम्र रंगत तेरी बताती. है ।

इश्क छिपता नही छिपाये से ।
कुछ निशानी भी बोल जाती है।।

उम्र कमसिन जरा सभल चलो।
आशिकी रोज आजमाती है ।।

मत करो याद इतनी शिद्दत से ।
नींद मेरी भी टूट जाती है ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on November 29, 2017 at 7:42am
आ0 राम अवध विश्वकर्मा साहब । हाँ यह भूल हो गई थी । अब इसे यूँ पढ़ें ।
यूँ तमन्ना तमाम क्या रक्खूँ ।
जिंदगी रोज तोड़ जाती है ।।

एडिट कर रहा हूँ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 28, 2017 at 8:01pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई लेकिन
बेसबब बात बदल जाती है
मेरे ज्ञान के अनुसार बह्र में नहीं है।क्योंकि फाइलातुन फइलातुन फैलुन में यह मिसरा है जबकि सभी मिसरे फाइलातुन मफाइलुन फैलुन में हैं। सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2017 at 7:05pm
हार्दिक बधाई ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 27, 2017 at 3:59pm
आदरणीय सर सादर नमन । कीमती इस्ला हेतु कोटि कोटि आभार ।
Comment by Samar kabeer on November 27, 2017 at 3:01pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
तीसरे शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।
चौथे शैर में 'कसमकस' को "कशमकश" कर लें ।

'उम्र कमसिन ज़रा सभल चलो'
ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है, यूँ कर लें :-
'उम्र कमसिन ज़रा सँभल के चलो'

'नींद मेरी भी टूट जाती है'
इस मिसरे को यूँ कर लें :-
'नींद आँखों से रूठ जाती है'
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 26, 2017 at 1:17pm
आ0 कालीपद प्रसाद मण्डल साहब तहे दिल से शुक्रिया ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 26, 2017 at 9:22am

मत करो याद इतनी शिद्दत से ।
नींद मेरी भी टूट जाती है ।। वाह्ह वह्ह्ह  बेहतरीन ग़ज़ल आ नवीन  मणि त्रिपाठी जी 

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 25, 2017 at 8:07pm
आ0 बहन रक्षिता सिंह जी सादर आभार ।
Comment by रक्षिता सिंह on November 25, 2017 at 1:14pm
उम्र कमसिन जरा सभल चलो।
आशिकी रोज आजमाती है ।।
आदरणीय नवीन जी,
बहुत ही खूबसूरत गज़ल,
दिली मुबारकबाद।

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